जननायक कर्पूरी ठाकुर


      

     

           *जननायक कर्पूरी ठाकुर*  

    (स्वतंत्रता सेनानी तथा राजनितीज्ञ)

              *जन्म : 24 जनवरी, 1924*

(पितौंझिया (कर्पूरी ग्राम), समस्तीपुर, बिहार)

             *मृत्यु : 17 फरवरी, 1988*

नागरिकता : भारतीय

प्रसिद्धि : वह जन नायक माने जाते थे। सरल और सरस हृदय के राजनेता माने जाते थे।

पार्टी : सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रान्ति दल, जनता पार्टी, लोक दल

पद : बिहार के 11वें मुख्यमंत्री

कार्य काल : 22 दिसंबर, 1970 से 2 जून, 1971 तथा 24 जून, 1977 से 21 अप्रैल, 1979 तक दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे।

अन्य जानकारी : बेदाग छवि के कर्पूरी ठाकुर आजादी से पहले 2 बार और आजादी मिलने के बाद 18 बार जेल गए।

               कर्पूरी ठाकुर भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था।

💁🏻‍♂️ *जीवन परिचय*

24 जनवरी, 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में जन्मे कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।


🎯 *ईमानदार नेता*

जब करोड़ो रुपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं। उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि ख़रीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।” एक दूसरा उदाहरण है, कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को खत लिखना नहीं भूले। इस ख़त में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, “पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।” रामनाथ ठाकुर इन दिनों भले राजनीति में हों और पिता के नाम का फ़ायदा भी उन्हें मिला हो, लेकिन कर्पूरी ठाक, छाच जीवन में उन्हें राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया। प्रभात प्रकाशन ने कर्पूरी ठाकुर पर ‘महान कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर’ नाम से दो खंडों की पुस्तक प्रकाशित की है। इसमें कर्पूरी ठाकुर पर कई दिलचस्प संस्मरण शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, “कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरीजी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।"


🔮  *सहज जीवनशैली के धनी*

कर्पूरी जी का वाणी पर कठोर नियंत्रण था। वे भाषा के कुशल कारीगर थे। उनका भाषण आडंबर-रहित, ओजस्वी, उत्साहवर्धक तथा चिंतनपरक होता था। कड़वा से कड़वा सच बोलने के लिए वे इस तरह के शब्दों और वाक्यों को व्यवहार में लेते थे, जिसे सुनकर प्रतिपक्ष तिलमिला तो उठता था, लेकिन यह नहीं कह पाता था कि कर्पूरी जी ने उसे अपमानित किया है। उनकी आवाज बहुत ही खनकदार और चुनौतीपूर्ण होती थी, लेकिन यह उसी हद तक सत्य, संयम और संवेदना से भी भरपूर होती थी। कर्पूरी जी को जब कोई गुमराह करने की कोशिश करता था तो वे जोर से झल्ला उठते थे तथा क्रोध से उनका चेहरा लाल हो उठता था। ऐसे अवसरों पर वे कम ही बोल पाते थे, लेकिन जो नहीं बोल पाते थे, वह सब उनकी आंखों में साफ-साफ झलकने लगता था। फिर भी विषम से विषम परिस्थितियों में भी शिष्टाचार और मर्यादा की लक्ष्मण रेखाओं का उन्होंने कभी भी उल्लंघन नहीं किया। सामान्य, सरल और सहज जीवनशैली के हिमायती कर्पूरी ठाकुर जी को प्रारंभ से ही सामाजिक और राजनीतिक अंतर्विरोधों से जूझना पड़ा। ये अंतर्विरोध अनोखे थे और विघटनकारी भी। हुआ यह कि आजादी मिलने के साथ ही सत्ता पर कांग्रेस काबिज हो गई। बिहार में कांग्रेस पर ऊंची जातियों का क़ब्ज़ा था। ये ऊंची जातियां सत्ता का अधिक से अधिक स्वाद चखने के लिए आपस में लड़ने लगीं। पार्टी के बजाय इन जातियों के नाम पर वोट बैंक बनने लगे। सन 1952 के प्रथम आम चुनाव के बाद कांग्रेस के भीतर की कुछ संख्या बहुल पिछड़ी जातियों ने भी अलग से एक गुट बना डाला, जिसका नाम रखा, '  ‘त्रिवेणी संघ’। अब यह संघ भी उस महानाटक में सम्मिलित हो गया।


शीघ्र ही इसके बुरे नतीजे सामने आने लगे। संख्याबल, बाहुबल और धनबल की काली ताकतें राजनीति और समाज को नियंत्रित करने लगीं। राजनीतिक दलों का स्वरूप बदलने लगा। निष्ठावान कार्यकर्ता औंधे मुंह गिरने लगे। कर्पूरी जी ने न केवल इस परिस्थिति का डटकर सामना किया, बल्कि इन प्रवृत्तियों का जमकर भंडाफोड़ भी किया। देश भर में कांग्रेस के भीतर और भी कई तरह की बुरा,  पैदा हो चुकी थीं, इसलिए उसे सत्ताच्युत करने के लिए सन 1967 के आम चुनाव में डॉ. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया गया। कांग्रेस पराजित हुई और बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। सत्ता में आम लोगों और पिछड़ों की भागीदारी बढ़ी। कर्पूरी जी उस सरकार में उप मुख्यमंत्री बने। उनका कद ऊंचा हो गया। उसे तब और ऊंचाई मिली जब वे 1977 में जनता पार्टी की विजय के बाद बिहार के मुख्यमंत्री बने। हुआ यह था कि 1977 के चुनाव में पहली बार राजनीतिक सत्ता पर पिछड़ा वर्ग को निर्णायक बढ़त हासिल हुई थी। मगर प्रशासन-तंत्र पर उनका नियंत्रण नहीं था। इसलिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग जोर-शोर से की जाने लगी। कर्पूरी जी ने मुख्यमंत्री की हैसियत से उक्त मांग को संविधान सम्मत मानकर एक फॉर्मूला निर्धारित किया और क,  के बाद उसे लागू भी कर दिया। इस पर पक्ष और विपक्ष में थोड़ा बहुत हो-हल्ला भी हुआ। अलग-अलग समूहों ने एक-दूसरे पर जातिवादी होने के आरोप भी लगाए। मगर कर्पूरी जी का व्यक्तित्व निरापद रहा। उनका कद और भी ऊंचा हो गया। अपनी नीति और नीयत की वजह से वे सर्वसमाज के नेता बन गए।


⚜️ *रोचक तथ्य*

कर्पूरी के 'कर्पूरी ठाकुर' होने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। वशिष्ठ नारायण सिंह लिखते हैं, समाजवादी नेता रामनंदन मिश्र का समस्तीपुर में भाषण होने वाला था, जिसमें छात्रों ने कर्पूरी ठाकुर से अपने प्रतिनिधि के रूप में भाषण कराया। उनके ओजस्वी भाषण को सुनकर मिश्र ने कहा कि यह कर्पूरी नहीं, ‘कर्पूरी ठाकुर’ है और अब इसी नाम से तुम लोग इसे जानो और तभी से कर्पूरी, कर्पूरी ठाकुर हो गए।

कर्पूरी ठाकुर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जो जन्मतिथि लिखकर नहीं रखते और न फूल की थाली बजाते हैं। 1924 में नाई जाति के परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर की जन्म तिथि 24 जनवरी 1924 मान ली गई। स्कूल में नामांकन के समय उनकी जन्म तिथि 24 जनवरी 1924 अंकित हैं।

बेदाग छवि के कर्पूरी ठाकुर आजादी से पहले 2 बार और आजादी मिलने के बाद 18 बार जेल गए।

ये कर्पूरी ठाकुर का ही कमाल था कि लोहिया की इच्छा के विपरीत उन्होंने सन् 1967 में जनसंघ-कम्युनिस्ट को एक चटाई पर समेटते हुए अवसर और भावना से सदा अनुप्राणित रहने वाले महामाया प्रसाद सिन्हा को गैर-कांग्रेसवाद की स्थापना के लिए मुख्यमंत्री बनाने की दिशा में पहल की और स्वयं को परदे के पीछे रखकर सफलता भी पाई।

किसी को कुछ लिखाते समय ही कर्पूरी ठाकुर को नींद आ जाती थी, तो नींद टूटने के बाद वे ठीक उसी शब्द से वह बात लिखवाना शुरू करते थे, जो लिखवाने के ठीक पहले वे सोये हुए थे।

🪔 *निधन*

वे राजनीति में कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक चालों को भी समझते थे और समाजवादी खेमे के नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी। वे सरकार बनाने के लिए लचीला रुख़अपना कर किसी भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे, लेकिन अगर मन मुताबिक़ काम नहीं हुआ तो गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे। यही वजह है कि उनके दोस्त और दुश्मन दोनों को ही उनके राजनीतिक फ़ैसलों के बारे में अनिश्चितता बनी रहती थी। कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था।            

     

         

महाराष्ट्र राज्य मंत्रिमंडळ २०२५

 मुख्यमंत्री ...देवेंद्र फडणवीस 

उपमुख्यमंत्री ..एकनाथ शिंदे अजित पवार



 कॅबिनेट मंत्री

1.चंद्रशेखर बावनकुळे - महसूल

2.राधाकृष्ण विखे पाटील - जलसंधारण ( गोदावरी व कृष्णा खोरे विकास)

3.हसन मुश्रीफ - वैद्यकीय शिक्षण

4.चंद्रकांत पाटील - उच्च व तंत्रशिक्षण, संसदीय कामकाजमंत्री

5.गिरीश महाजन - जलसंधारण (विदर्भ, तापी, कोकण विकास), आपत्ती व्यवस्थापन

6.गुलाबराव पाटील - पाणीपुरवठा

7.गणेश नाईक - वन

8.दादाजी भुसे - शालेय शिक्षण

9.संजय राठोड - माती व पाणी परीक्षण

10.*धनंजय मुंडे - अन्न व नागरी पुरवठा आणि जो ग्राहक संरक्षण*

11.मंगलप्रभात लोढा - कौशल्य विकास, रोजगार, उद्योग व संशोधन

12.उदय सामंत - उद्योग व मराठी भाषा

13.जयकुमार रावल - विपणन, प्रोटोकॉल

14.पंकजा मुंडे - पर्यावरण व वातावरण बदल, पशुसंवर्धन

15.अतुल सावे - ओबीसी विकास, दुग्धविकास मंत्रालय, ऊर्जा नुतनीकर

16.अशोक उईके - आदिवासी विकास मंत्रालय

17.शंभूराज देसाई - पर्यटन, खाण व स्वातंत्र्य सैनिक कल्याण मंत्रालय

18.आशिष शेलार - माहिती व तंत्रज्ञान 

19.दत्तात्रय भरणे - क्रीडा व अल्पसंख्याक विकास व औकाफ मंत्रालय

20.अदिती तटकरे - महिला व बालविकास 

21.शिवेंद्रराजे भोसले - सार्वजनिक बांधकाम

22.माणिकराव कोकाटे - कृषी 

23.जयकुमार गोरे - ग्रामविकास, पंचायत राज

24.नरहरी झिरवाळ - अन्न व औषध प्रशासन

25.संजय सावकारे - कापड

26.संजय शिरसाट - सामाजिक न्याय 

27.प्रताप सरनाईक - वाहतूक 

28.भरत गोगावले - रोजगार हमी,फलोत्पादन

29.मकरंद पाटील - मदत व पुनर्वसन

30.नितेश राणे - मत्स्य आणि बंदरे 

31.आकाश फुंडकर - कामगार 

32.बाबासाहेब पाटील - सहकार 

33.प्रकाश आबिटकर - सार्वजनिक आरोग्य आणि कुटुंब कल्याण 


राज्यमंत्री (State Ministers )

34. माधुरी मिसाळ - सामाजिक न्याय, अल्पसंख्याक विकास व औकाफ मंत्रालय, वैद्यकीय शिक्षण 

35. आशिष जयस्वाल - अर्थ आणि नियोजन, विधी व न्याय 

36. मेघना बोर्डीकर - सार्वजनिक आरोग्य, कुटुंब कल्याण, पाणी पुरवठा 

37. इंद्रनील नाईक - उच्च आणि तंत्र शिक्षण , आदिवासी विकास आणि पर्यटन 

38. योगेश कदम - गृहराज्य शहर


39. पंकज भोयर - गृहनिर्मा

फार्मर आयडी कार्ड

 

फार्मर आयडी कार्ड म्हणजे काय?

फार्मर आयडी कार्ड हे शेतकऱ्यांसाठी एक महत्वाचं ओळखपत्र आहे. यामुळे शेतकऱ्यांना विविध सरकारी योजनांचा आणि सवलतींचा फायदा मिळवता येतो. यामध्ये सरकारी अनुदान, कृषी कर्ज, इत्यादीचा समावेश होतो.

मोबाईलवर फार्मर आयडी कार्ड कसं काढायचं?

१. अधिकृत अ‍ॅप किंवा वेबसाइट वर जा

सर्वप्रथम, तुम्हाला आपल्या राज्याच्या कृषी विभागाच्या अधिकृत अ‍ॅप किंवा वेबसाइटवर जाऊन लॉगिन करावं लागेल.

२. अर्ज भरा


अ‍ॅप किंवा वेबसाइटवर शेतकऱ्यांना आवश्यक माहिती भरावी लागते. यामध्ये नाव, आधार कार्ड, जमीन आकार, इत्यादी माहिती द्यावी लागते.


३. कागदपत्रे अपलोड करा


अर्ज सोबत काही आवश्यक कागदपत्रांची स्कॅन कॉपी अपलोड करा. उदाहरणार्थ, आधार कार्ड, जमीन मालकीचे प्रमाणपत्र आणि फोटो.


४. अर्ज सबमिट करा


सर्व माहिती आणि कागदपत्रे भरल्यानंतर अर्ज सबमिट करा. अर्ज सबमिट केल्यानंतर तुम्हाला एक कंफर्मेशन मिळेल.


५. फार्मर आयडी कार्ड डाउनलोड करा


अर्ज प्रक्रियेनंतर तुम्हाला फार्मर आयडी कार्ड डाउनलोड करण्यासाठी लिंक मिळेल. तुम्ही ते डाउनलोड करून प्रिंट घेऊ शकता.

महावितरण सातारा मंडल कार्यालय उमेदवार भरती 2025

 





महावितरण


जाहीर सूचना


अधीक्षक अभियंता, महावितरण सातारा मंडल कार्यालय, पहिला मजला कृष्णानगर, सातारा या आस्थापनेवर महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षण मंडळ (एस.एस.सी., एच.एस.सी.) यांचे १०+२ बंधा मधील माध्यमिक शालांत परीक्षा उत्तीर्ण प्रमाणपत्र किंवा तत्सम परीक्षा उत्तीर्ण आणि औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थेतील व्यवसाय पाठ्यक्रम पुर्ण बीजतंत्री / तारतंत्री प्रमाणपत्र प्राप्त उमेदवारांकडुन ऑनलाईन अर्ज मागविण्यात येत आहेत. तरी इच्छुक पात्र उमेदवारांनी दि. २३/०२/२०२५ रोजी रात्री १२.०० वाजेपर्यंत www.apprenticeshipindia. gov.in या संकेतस्थळरावर, खालील आस्थापनेवर उमेदवाराने ITI Electrician किंवा ITI Wireman यापैकी जो कोर्स उत्तीर्ण झाला आहे त्या कोर्ससाठी एकाच अस्थापनेवर (एकाच विभागासाठी) Online अर्ज सादर करावा. यापूर्वी शिकाऊ उमेदवारी पुर्ण केली असल्यास पुन्हा अर्ज करु नये.


१) सातारा विभागासाठी आस्थापना नाव EXECUTIVE ENGINEER MSEDCL SATARA DIVISION-E10212700040


२) कराड विभागासाठी आस्थापना नाव EXECUTIVE ENGINEER MSEDCL KARAD DIVISION-E10212700063


३) फलटण विभागासाठी आस्थापना नाव EXECUTIVE ENGINEER MSEDCL PHALTAN DIVISION-E10212700061


४) वाई विभागासाठी आस्थापना नाव EXECUTIVE ENGINEER MSEDCL WAI DIVISION-E10212700064


५) वडुज विभागासाठी आस्थापना नाव EXECUTIVE ENGINEER MSEDCL VADUJ DIVISION-E10212700048


६) सातारा मंडल कार्यालयासाठी MAHARASHTRA STATE ELECTRICITY DIST. CO. LTD. SATARA CIRCLE E06162700015 टिप :-


१) दि. २३/०२/२०२५ नंतर प्राप्त अर्जाचा विचार केला जाणार नाही.


२) उमेदवाराने www.apprenticeshipindia.gov.in या संकेतस्थळावर नोंदणी करणे आवश्यक असून सदरचे प्रोफाईल १००% भरलेले असावे व आधार लिंक असणे गरजेचे आहे.


३) निवड झालेल्या उमेदवारांना नियमाप्रमाणे विद्यावेतन अदा केले जाईल तसेच प्रशिक्षण कालावधी एक वर्षांचा राहिल.


४) भरती प्रक्रियेदरम्यान उमेदवाराने राजकीय दबाव आणल्यास आपली उमेदवारी रद्द समजण्यात येईल याची नोंद घ्यावी.


(५) शिकाऊ उमेदवार निवड प्रक्रियेत आवश्यकता भासल्यास बदल करण्याचे सर्व अधिकार निम्नस्वाक्षरीकार यांना राहतील.


PRO/BMTZ/196/2024-25


अधिक्षक अभियंता, सातारा

अंगणवाडी सेविका मदतनीस भरती 2025

 

महिला व बालविकास विभागानं (Women and Child Development Department) एक महत्वाचा निर्णय घेतला आहे. या विभागात 18 हजार 882 पदांची भरती होणार आहे.

महाराष्ट्र शासनाने 70 हजार पदांची भरती करण्याचा निर्णय घेतला असून, महिला व बालविकास विभागांतर्गत एकात्मिक बालविकास सेवा योजनेअंतर्गत 5639 अंगणवाडी सेविका व 13243 अंगणवाडी मदतनीस अशा एकूण 18882 पदांची भरती करण्यात येणार आहे.

14 फेब्रुवारी ते 2 मार्च दरम्यान भरती प्रक्रिया राबवण्यात येणार


14 फेब्रुवारी ते 2 मार्च दरम्यान मुख्य सेविका पदासाठीही सरळ सेवेच्या माध्यमातून भरती प्रक्रिया राबवण्यात येणार आहे. ही प्रक्रियाही पारदर्शक पद्धतीनं राबवण्याबाबत उचित खबरदारी घेण्याचे निर्देश संबंधित अधिकाऱ्यांना देण्यात आले आहेत. यासोबतच राज्य महिला आयोग, महिला आर्थिक विकास महामंडळ, बालकल्याण समिती, बाल न्याय मंडळातील रिक्त पदांचीही भरती प्रक्रिया लवकरात लवकर सुरु करावी अशा सूचना अधिकाऱ्यांना दिल्या आहेत. यावेळी महिला आणि बालविकास विभागाचे सचिव डॉ. अनुप कुमार यादव, एकात्मिक बाल विकास सेवा योजनेचे आयुक्त श्री कैलास पगारे यांच्यासह इतर अधिकारी उपस्थित होते.


इच्छुक आणि पात्र उमेदवारांसाठी ही एक मोठी संधी


महिला व बालविकास विभागात विविध पदांसाठी मोठ्या प्रमाणावर भरती प्रक्रिया राबवली जाणार आहे. इच्छुक आणि पात्र उमेदवारांसाठी ही एक मोठी संधी आहे. कारण 18882 पदांची भरती या महिला आणि बालविकास विभागात होणार आहे. अद्याप विभागानं याबाबतच्या कोणत्याही तारखा निश्चित केल्या नाहीत. यासंदर्रभातील भरती प्रक्रियेचे संपूर्ण वेळापत्रक लवकरच जाहीर होण्याचे आहे



भारतातील महत्त्वाचे महोत्सव

 

भारत देशाची संस्कृती खूप प्राचीन आहे 

प्रत्येक राज्यामध्ये वेगवेगळे महोत्सव साजरे केले जातात 

 महत्त्वाचे महोत्सव  खालील प्रमाणे


"रज पर्व" ओडीसा


बन्नी महोत्सव - आंध्रप्रदेश


लोसांग महोत्सव - सिक्किम

 सिग्मो महोत्सव - गोवा

तानसेन महोत्सव - ग्वालियर, MP


गीता महोत्सव - कुरुक्षेत्र, हरियाणा


 हेथाई अम्मन उत्सव - तमिळनाडू


जल्लीकट्टू महोत्सव - तमिलनाडु

 कंबाला महोत्सव - कर्नाटक


 हॉर्नबिल उत्सव नागालँड

उगादी महोत्सव : आंध्रप्रदेश


देहिंग पत्काई : आसाम


 राखादुम्नी उत्सव : हिमाचल प्रदेश


ओणम : केरळ


 लोहरी, बैसाखी : पंजाब


बैसाखी : हरियाणा


पोंगल : तमिळनाडू


मकरविलक्कू उत्सव - केरळ


हेमिस त्सेचुमहोत्सवः लडाख


ऊंट महोत्सव बीकानेर, राजस्थान


• मरू महोत्सव - जैसलमेर, राजस्थान

NEET exam 2025 . अर्ज

 नॅशनल टेस्टिंग एजन्सी (NTA) ने नीट यूजी 2025 च्या परीक्षेची तारीख आणि अर्ज प्रक्रियेशी संबंधित महत्वाची माहिती जारी केली आहे. 

ही परीक्षा 4 मे 2025 रोजी होणार आहे. इच्छुक उमेदवार 7 फेब्रुवारी 2025 ते 7 मार्च 2025 पर्यंत (रात्री 11:50 वाजेपर्यंत)

 neet.nta.nic.in

 अधिकृत वेबसाइटवर जाऊन अर्ज करू शकतात.


नीट यूजी 2025 पात्रता निकष


वयाची अट :


• किमान वय 31 डिसेंबर 2025 रोजी 17 वर्ष असावे.


• कमाल वयोमर्यादेवर कोणतेही बंधन नाही.


शैक्षणिक पात्रता :


• उमेदवार फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी/बायोलॉजीसह बारावी किंवा समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण असावा.


• बारावीबोर्डाच्या परीक्षेतील किमान गुण प्रवर्गानुसार निश्चित करण्यात आले आहेत.


राष्ट्रीयत्वः


भारतीय नागरिक, ओव्हरसीज सिटिझन ऑफ इंडिया (ओसीआय), भारतीय वंशाच्या व्यक्ती (पीआयओ) आणि परदेशी नागरिक अर्ज करू शकतात. 

नीट यूजी 2025 परीक्षा पॅटर्न


प्रत्येक अचूक उत्तरासाठी +4 गुण मिळतील आणि चुकीच्या


उत्तरासाठी -1 गुण कापले जातील.


परीक्षा कालावधी: 180 मिनिटे (3 तास)


परीक्षेचे माध्यम : हिंदी, इंग्रजी, आसामी, बंगाली, गुजराती, कन्नड, मल्याळम, मराठी, ओडिया, पंजाबी, तमिळ, तेलुगू आणि उर्दू अशा 13 भाषांमध्ये ही परीक्षा घेण्यात येणार आहे.


नीट यूजी 2025 अर्ज प्रक्रियेसाठी अर्ज कसा करावा?


• neet.nta.nic.in अधिकृत संकेतस्थळाला भेट द्या.


• "नीट यूजी 2025 अर्ज फॉर्म" लिंकवर क्लिक करा.


• नवीन नोंदणी करून लॉगिन करा.


• अर्जात वैयक्तिक, शैक्षणिक आणि इतर माहिती भरा.


• फोटो, स्वाक्षरी आणि इतर कागदपत्रे अपलोड करा.


• श्रेणीनुसार ऑनलाइन (डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, यूपीआय, नेट बँकिंग) शुल्क भरा.


• फॉर्म सबमिट करा आणि कन्फर्मेशन पेजची प्रिंटआऊट घ्या.


नीट यूजी 2025 साठी महत्वाच्या टिप्स


• अर्ज प्रक्रिया वेळेत पूर्ण करा आणि शेवटच्या तारखेची वाट पाहू नका.




• परीक्षेचा पॅटर्न आणि अभ्यासक्रम नीट समजून घ्या आणि चांगली तयारी करा.

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान

 

     

       *ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान*


    *जन्म : 6 फ़रवरी 1890*

उतमंजाई, भारत (आज़ादी से पूर्व)

  *मृत्यु : 20 जनवरी 1988*

          (पेशावर, पाकिस्तान)


पूरा नाम : ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार  

                 ख़ान

अन्य नाम : 'सीमांत गांधी', 'बाचा 

                 ख़ान', 'बादशाह ख़ान'

अभिभावक : अब्दुल्ला ख़ान (परदादा), बैरम ख़ान (पिता)

नागरिकता : भारतीय

पार्टी : कांग्रेस

विद्यालय : मिशनरी स्कूल

जेल यात्रा : 1919 ई., 1930 ई. और 1942 ई. में जेल यात्रा की।


पुरस्कार-उपाधि : भारत रत्न


रचना : 'माई लाइफ़ ऐंड स्ट्रगल'


अन्य जानकारी : गांधी जी के कट्टर अनुयायी होने के कारण ही उनकी 'सीमांत गांधी' की छवि बनी। विनम्र ग़फ़्फ़ार ने सदैव स्वयं को एक 'स्वतंत्रता संघर्ष का सैनिक' मात्र कहा, परन्तु उनके प्रसंशकों ने उन्हें 'बादशाह ख़ान' कह कर पुकारा।


ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान सीमाप्रांत और बलूचिस्तान के एक महान राजनेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अपने कार्य और निष्ठा के कारण "सरहदी गांधी" (सीमान्त गांधी), "बच्चा खाँ" तथा "बादशाह खान" के नाम से पुकारे जाने लगे। वे भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेज शासन के विरुद्ध अहिंसा के प्रयोग के लिए जाने जाते है। एक समय उनका लक्ष्य संयुक्त, स्वतन्त्र और धर्मनिरपेक्ष भारत था। इसके लिये उन्होने 1920 में खुदाई खिदमतगार नाम के संग्ठन की स्थापना की। यह संगठन "सुर्ख पोश" के नाम से भी जाने जाता है।


💁‍♂ *जीवनी*


खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्म पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था। उनके परदादा आबेदुल्ला खान सत्यवादी होने के साथ ही साथ लड़ाकू स्वभाव के थे। पठानी कबीलियों के लिए और भारतीय आजादी के लिए उन्होंने बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी थी। आजादी की लड़ाई के लिए उन्हें प्राणदंड दिया गया था। वे जैसे बलशाली थे वैसे ही समझदार और चतुर भी। इसी प्रकार बादशाह खाँ के दादा सैफुल्ला खान भी लड़ाकू स्वभाव के थे। उन्होंने सारी जिंदगी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जहाँ भी पठानों के ऊपर अंग्रेज हमला करते रहे, वहाँ सैफुल्ला खान मदद में जाते रहे।


आजादी की लड़ाई का यही सबक अब्दुल गफ्फार खान ने अपने दादा से सीखा था। उनके पिता बैराम खान का स्वभाव कुछ भिन्न था। वे शांत स्वभाव के थे और ईश्वरभक्ति में लीन रहा करते थे। उन्होंने अपने लड़के अब्दुल गफ्फार खान को शिक्षित बनाने के लिए मिशन स्कूल में भरती कराया यद्यपि पठानों ने उनका बड़ा विरोध किया। मिशनरी स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के पश्चात् वे अलीगढ़ गए किंतु वहाँ रहने की कठिनाई के कारण गाँव में ही रहना पसंद किया। गर्मी की छुट्टियाँ में खाली रहने पर समाजसेवा का कार्य करना उनका मुख्य काम था। शिक्षा समाप्त होने के बाद यह देशसेवा में लग गए।


पेशावर में जब 1919 ई. में फौजी कानून (मार्शल ला) लागू किया गया उस समय उन्होंने शांति का प्रस्ताव उपस्थित किया, फिर भी वे गिरफ्तार किए गए। अंग्रेज सरकार उनपर विद्रोह का आरोप लगाकर जेल में बंद रखना चाहती थी अत: उसकी ओर से इस प्रकार के गवाह तैयार करने के प्रयत्न किए गए जो यह कहें कि बादशाह खान के भड़काने पर जनता ने तार तोड़े। किंतु कोई ऐसा व्यक्ति तैयार नहीं हुआ जो सरकार की तरफ ये झूठी गवाही दे। फिर भी इस झूठे आरोप में उन्हें छह मास की सजा दी गई।


खुदाई खिदमतगार का जो सामाजिक संगठन उन्होंने बनाया था, उसका कार्य शीघ्र ही राजनीतिक कार्य में परिवर्तित हो गया। खान साहब का कहना है : प्रत्येक खुदाई खिदमतगार की यही प्रतिज्ञा होती है कि हम खुदा के बंदे हैं, दौलत या मौत की हमें कदर नहीं है। और हमारे नेता सदा आगे बढ़ते चलते है। मौत को गले लगाने के लिये हम तैयार है। 1930 ई. में सत्याग्रह करने पर वे पुन: जेल भेजे गए और उनका तबादला गुजरात (पंजाब) के जेल में कर दिया गया। वहाँ आने के पश्चात् उनका पंजाब के अन्य राजबंदियों से परिचय हुआ। जेल में उन्होंने सिख गुरूओं के ग्रंथ पढ़े और गीता का अध्ययन किया। हिंदु तथा मुसलमानों के आपसी मेल-मिलाप को जरूरी समझकर उन्होंने गुजरात के जेलखाने में गीता तथा कुरान के दर्जे लगाए, जहाँ योग्य संस्कृतज्ञ और मौलवी संबंधित दर्जे को चलाते थे। उनकी संगति से अन्य कैदी भी प्रभावित हुए और गीता, कुरान तथा ग्रंथ साहब आदि सभी ग्रंथों का अध्ययन सबने किया।


२९ मार्च सन् १९३१ को लंदन द्वितीय गोल मेज सम्मेलन के पूर्व महात्मा गांधी और तत्कालीन वाइसराय लार्ड इरविन के बीच एक राजनैतिक समझौता हुआ जिसे गांधी-इरविन समझौता (Gandhi–Irwin Pact) कहते हैं। गांधी इरविन समझौता|गांधी इरविन समझौते के बाद खान साहब छोड़े गए और वे सामाजिक कार्यो में लग गए।


गांधीजी इंग्लैंड से लौटे ही थे कि सरकार ने कांग्रेस पर फिर पाबंदी लगा दी अत: बाध्य होकर व्यक्तिगत अवज्ञा का आंदोलन प्रारंभ हुआ। सीमाप्रांत में भी सरकार की ज्यादतियों के विरूद्ध मालगुजारी आंदोलन शुरू कर दिया गया और सरकार ने उन्हें और उनके भाई डॉ. खान को आंदोलन का सूत्रधार मानकर सारे घर को कैद कर लिया।


1934 ई. में जेल से छूटने पर दोनों भाई वर्धा में रहने लगे। और इस बीच उन्होंने सारे देश का दौरा किया। कांग्रेस के निश्चय के अनुसार 1939 ई. में प्रांतीय कौंसिलों पर अधिकार प्राप्त हुआ तो सीमाप्रांत में भी कांग्रेस मंत्रिमडल उनके भाई डॉ. खान के नेतृत्व में बना लेकिन स्वयं वे उससे अलग रहकर जनता की सेवा करते रहे। 1942 ई. के अगस्त आंदोलन के सिलसिले में वे गिरफ्तार किए गए और 1947 ई. में छूटे।


देश का बटवारा होने पर उनका संबंध भारत से टूट सा गया किंतु वे देश के विभाजन से किसी प्रकार सहमत न हो सके। इसलिए पाकिस्तान से उनकी विचारधारा सर्वथा भिन्न थी। पाकिस्तान के विरूद्ध उन्होने स्वतंत्र पख्तूनिस्तान आंदोलन आजीवन जारी रखा।


1970 में वे भारत और देश भर में घूमे। उस समय उन्होंने शिकायत की भारत ने उन्हें भेड़ियों के समाने डाल दिया है तथा भारत से जो आकांक्षा थी, एक भी पूरी न हुई। भारत को इस बात पर बार-बार विचार करना चाहिए।


उन्हें वर्ष 1987 में भारत रत्न से सम्मनित किया गया।


👬🏻 *महात्मा गाँधी के साथ*


पेशावर में जब 1919 ई. में अंग्रेज़ों ने 'फ़ौजी क़ानून' (मार्शल लॉ) लगाया। अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान ने अंग्रेज़ों के सामने शांति का प्रस्ताव रखा, फिर भी उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया।


1930 ई. में सत्याग्रह आंदोलन करने पर वे पुन: जेल भेजे गए और उन्हें गुजरात (उस समय पंजाब का भाग) की जेल भेजा गया। वहाँ पंजाब के अन्य बंदियों से उनका परिचय हुआ। उन्होंने जेल में सिख गुरुओं के ग्रंथ पढ़े और गीता का अध्ययन किया। हिंदू मुस्लिम एकता को ज़रूरी समझकर उन्होंनें गुजरात की जेल में गीता तथा क़ुरान की कक्षा लगायीं, जहाँ योग्य संस्कृतज्ञ और मौलवी संबंधित कक्षा को चलाते थे। उनकी संगति से सभी प्रभावित हुए और गीता, क़ुरान तथा गुरु ग्रंथ साहब आदि सभी ग्रंथों का अध्ययन सबने किया। बादशाह ख़ान (ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान) आंदोलन भारत की आज़ादी के अहिंसक राष्ट्रीय आंदोलन का समर्थन करते थे और इन्होंने पख़्तूनों को राजनीतिक रूप से जागरूक बनाने का प्रयास किया। 1930 के दशक के उत्तरार्द्ध तक ग़फ़्फ़ार ख़ां महात्मा गांधी के निकटस्थ सलाहकारों में से एक हो गए और 1947 में भारत का विभाजन होने तक ख़ुदाई ख़िदमतगार ने सक्रिय रूप से कांग्रेस पार्टी का साथ दिया। इनके भाई डॉक्टर ख़ां साहब (1858-1958) भी गांधी के क़रीबी और कांग्रेसी आंदोलन के सहयोगी थे। सन 1930 ई. के गाँधी-इरविन समझौते के बाद अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को छोड़ा गया और वे सामाजिक कार्यो में लग गए। 1937 के प्रांतीय चुनावों में कांग्रेस ने पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत की प्रांतीय विधानसभा में बहुमत प्राप्त किया। ख़ां साहब को पार्टी का नेता चुना गया और वह मुख्यमंत्री बने। 1942 ई. के अगस्त आंदोलन में वह गिरफ्तार किए गए और 1947 ई. में छूटे।


देश के विभाजन के विरोधी ग़फ़्फ़ार ख़ां ने पाकिस्तान में रहने का निश्चय किया, जहां उन्होंने पख़्तून अल्पसंख़्यकों के अधिकारों और पाकिस्तान के भीतर स्वायत्तशासी पख़्तूनिस्तान (या पठानिस्तान) के लिए लड़ाई जारी रखी। भारत का बँटवारा होने पर उनका संबंध भारत से टूट सा गया किंतु वह भारत के विभाजन से किसी प्रकार सहमत न थे। पाकिस्तान से उनकी विचारधारा सर्वथा भिन्न थी। पाकिस्तान के विरुद्ध 'स्वतंत्र पख़्तूनिस्तान आंदोलन' आजीवन चलाते रहे। उन्हें अपने सिद्धांतों की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी, वह कई वर्षों तक जेल में रहे और उसके बाद उन्हें अफ़ग़ानिस्तान में रहना पड़ा।


1985 के 'कांग्रेस शताब्दी समारोह' के आप प्रमुख आकर्षण का केंद्र थे। 1970 में वे भारत भर में घूमे। 1972 में वह पाकिस्तान लौटे।


इनका संस्मरण ग्रंथ "माई लाइफ़ ऐंड स्ट्रगल" 1969 में प्रकाशित हुआ।


⏳ *मृत्यु*


सन 1988 में पाक़िस्तान सरकार ने उन्हें पेशावर में उनके घर में नज़रबंद कर दिया गया। 20 जनवरी 1988 को उनकी मृत्यु हो गयी और उनकी अंतिम इच्छानुसार उन्हें जलालाबाद अफ़ग़ानिस्तान में दफ़नाया गया।


         

सामान्य ज्ञान जनरल नॉलेज 7

 सामान्य  ज्ञान जनरल नॉलेज..


1 निल क्रांती कशाशी संबंधित आहे ?

- मत्स्य उत्पादन वाढ.


2 नाईलच्या नदीच्या देणगीचा देश कोणता ?

- इजिप्त.


3 खेचोपलरी हे सरोवर कोणत्या राज्यात आहे ?

- सिक्कीम.


4.संविधान सभेने संविधानास कधी मान्यता दिली ?

- २६ नोव्हेंबर १९४९.


5. दक्षिण आफ्रिका या देशाची राजधानी कोणती आहे ?

- प्रिटोरिया






6) न्यूट्रॉनचा शोध कोणी लावला ?

- सर जेम्स चँडविक.


०7) युरोपचे क्रीडांगणाचा देश कोणता आहे ?

- स्वित्झर्लंड.


०8) खोजीहार हे सरोवर कोणत्या राज्यात आहे ?

- हिमाचल प्रदेश.


०9) भारतीय संविधानाची अंमलबजावणी कधी पासून सुरू झाली ?

- २६ जानेवारी १९५०.


10) केनिया या देशाची राजधानी कोणती आहे ?

- नैरोबी.



कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

 

      *कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी*


      *जन्म : 30 दिसंबर, 1887*

             भड़ोच (गुजरात)


      *मृत्यु : 8 फरवरी, 1971*

                बम्बई (मुम्बई)


नागरिकता : भारतीय

प्रसिद्धि : स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, क़ानून विशेषज्ञ, साहित्यकार तथा शिक्षाविद


धर्म : हिन्दू


आंदोलन : होम रूल आंदोलन, बारदोली सत्याग्रह, नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आन्दोलन


विद्यालय : बम्बई विश्वविद्यालय

शिक्षा : एल.एल.बी. (वकालत)

विशेष योगदान भारतीय विद्या भवन की स्थापना


पद : राज्यपाल (उत्तर प्रदेश)

कार्यकाल 2 जून, 1952 से 9 जून 1957 तक


अन्य जानकारी : संविधान-निर्माण के लिए बनायी गयी समितियों में से कन्हैयालाल मुंशी सबसे ज़्यादा ग्यारह समितियों के सदस्य बनाये गये थे।


कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया , संविधान निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी , उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार के मंत्री तथा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में काम किया | उपन्यासकार और नाटककार के रूप में भी उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की | भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए उनके द्वारा स्थापित “भारतीय विद्या भवन” आज भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है |


श्री मुंशी का जन्म 30 दिसम्बर 1887 को दक्षिण गुजरात के भड़ोच नगर में हुआ था | आरम्भिक शिक्षा के बाद ये बडौदा कॉलेज में भर्ती हुए जहा उन्हें अरविन्द घोष जैसे क्रांतिकारी प्राध्यापक पढाने के लिए मिले | शिक्षा पुरी करने के बाद मुंशी ने वकालत शुरू की और अपनी सूझ-बुझ तथा कानूनी ज्ञान के कारण उनकी बहुत प्रसिद्धि हुयी | वे गुजराती और अंग्रेजी के अतिरिक्त फ्रेंच और जर्मन भाषा के भी अच्छे ज्ञाता थे | वैदिक और संस्कृत साहित्य का उन्होंने गहन अध्ययन किया था |


वे शीघ्र ही सार्वजनिक कार्यो में भी रूचि लेने लगे और 1927 में मुम्बई प्रांतीय कौंसिल के सदस्य चुने गये | 1928 के बारदोली सत्याग्रह के बाद वे गांधीजी के प्रभाव में आये | 1930 के नमक सत्याग्रह में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया | 1937 में श्री मुंशी को मुम्बई की पहली कांग्रेस सरकार में गृहमंत्री बनाया गया | 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के बाद वे फिर गिरफ्तार हो गये परन्तु इसके बाद आत्मरक्षा के लिए हिंसा के प्रयोग के प्रश्न पर मतभेद हो जाने के कारण वे कांग्रेस से अलग हो गये |


कन्हैयालाल जी स्वतंत्राता सेनानी थे, बंबई प्रांत और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री थे, राज्यपाल रहे, अधिवक्ता थे, लेकिन उनका नाम सर्वोपरि भारतीय विद्या भवन के संस्थापक के रूप में ख्यात है। 7 नवंबर, 1938 को भारतीय विद्या भवन की स्थापना के समय उन्होंने एक ऐसे स्वप्न की चर्चा की थी जिसका प्रतिफल यह भा.वि.भ. होता- यह स्वप्न था वैसे केन्द्र की स्थापना का, ‘जहाँ इस देश का प्राचीन ज्ञान और आधुनिक बौद्धिक आकांक्षाएँ मिलकर एक नए साहित्य, नए इतिहास और नई संस्कृति को जन्म दे सकें।’ कन्हैयालाल जी जड़ता के विरोधी और नवीनता के पोषक थे। उनकी नजर में ‘भारतीय संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं थी।’ वे भारतीय संस्कृति को ‘चिंतन का एक सतत प्रवाह’ मानते थे। वे इस विचार के पोषक थे कि अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी हमें बाहर की हवा का निषेध नहीं करना चाहिए। वे अपनी लेखनी में भी सांस्कृतिक पुनर्जागरण की बात कहते रहते थे।


वे गुजराती और अँग्रेजी के अच्छे लेखक थे, लेकिन राष्ट्रीय हित में हमेशा हिंदी के पक्षधर रहे। उन्होंने ‘हंस’ पत्रिका के संपादन में प्रेमचंद का सहयोग किया। वे राष्ट्रीय शिक्षा के समर्थक थे। वे पश्चिमी शिक्षा के अंधानुकरण का विरोध करते थे। मंत्री के रूप में उनका एक महत्वपूर्ण कार्य रहा - वन महोत्सव आरंभ करना। वृक्षारोपण के प्रति वे काफी गंभीर थे। मुन्शी जी वस्तुतः और मूलतः भारतीय संस्कृति के दूत थे। सांस्कृतिक एकीकरण के बिना उनकी नजर में किसी भी सामाजिक-राजनीतिक कार्यक्रम का कोई महत्व नहीं था।


📙 *संविधान-निर्माण में योगदान*


स्वतंत्र भारत के लिए नये संविधान-निर्माण के रचयिताओं में आदर्शवाद व यथार्थवाद के मिश्रण की आवश्यकता थी। राजनीतिक अंतर्दृष्टि और कुशाग्र कानूनी बुद्धि से परिपूर्ण कन्हैयालाल मुंशी इस कार्य में सबसे दक्ष माने गये। संविधान-निर्माण के लिए बनायी गयी समितियों में से मुंशी सबसे ज़्यादा ग्यारह समितियों के सदस्य बनाये गये। डॉ. भीमराव आम्बेडकर की अध्यक्षता में बनायी गयी संविधान निर्माण की प्रारूप समिति में कानून में ‘हर व्यक्ति को समान संरक्षण’ के सिद्धांत का मसविदा मुंशी और आम्बेडकर ने संयुक्त रूप से लिखा था। इसी प्रकार कई अड़चनों और व्यवधानों के बावजूद हिंदी तथा देवनागरी लिपि को नये भारतीय संघ की राजभाषा का स्थान दिलाने में मुंशी ने सबसे प्रमुख भूमिका निभायी। 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा के इस निर्णय को प्रति वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान-निर्माण में कन्हैयालाल मुंशी का सबसे ज़्यादा ध्यान एक मज़बूत केंद्र के अंतर्गत संघीय प्रणाली विकसित करना था, देसी रियासतों के भारत में विलय की मुश्किलों के संदर्भ में और असंख्य विविधताओं वाले इस नव-स्वतंत्र राष्ट्र में मुंशी सहित अन्य संविधान-निर्माताओं ने एक मज़बूत केंद्रीय सरकार को अपरिहार्य माना। कन्हैयालाल मुंशी के लिए भारतीय संविधान की पहली पंक्ति ‘इण्डिया दैट इज़ भारत’ वाक्यांश का अर्थ केवल एक भूभाग नहीं बल्कि एक अंतहीन सभ्यता है, ऐसी सभ्यता जो अपने आत्म-नवीनीकरण के ज़रिये सदैव जीवित रहती है।


📚 *उनकी साहित्यिक देन*


के. एम. मुंशीजी ने गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, तमिल, मराठी, अंग्रेजी आदि भाषाओं में 127 पुस्तकें लिखीं । वे गुजरात के श्रेष्ठ साहित्यकार रहे हैं । उनकी पहली कहानी ”मारी कमला” 1912 में स्त्री बोध नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई । उन्होंने ”गुजरात” का भी सम्पादन किया । उपन्यास, नाटक, कहानी, निबन्ध, आत्मकथा, जीवनी आदि पर उन्होंने अपनी लेखनी चलायी ।


⚜ *उपसंहार*


मुंशीजी गुजरात के ही नहीं, सारे देश के अमूल्य रत्न थे । शिक्षा जगत्, साहित्य जगत्, राजनीति, धर्म, दर्शन, इतिहास के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए समूचा भारतवर्ष उनका ऋणी रहेगा । वन महोत्सव का प्रारम्भ कर वृक्षारोपण के माध्यम से प्रकृति के प्रति उनका यह प्रेम समस्त मानव समुदाय के लिए उपयोगी रहेगा ।


🌀 *प्रमुख कार्य*


v १९०४- भरूच में मफत पुस्तकालय की स्थापना


v १९१२ – ‘भार्गव’ मासिक की स्थापना


v १९१५-२० 'होमरुल लीग’ के मंत्री


v ‘वीसमी सदी’ मासिक में प्रसिद्ध धारावाहिक नवलकथा लिखा


v १९२२- ‘गुजरात’ मासिक का प्रकाशन


v १९२५- मुंबइ धारासभा में चुने गये


v १९२६- गुजराती साहित्य परिषदना बंधारणना घडवैया


v १९३०- भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस में प्रवेश


v १९३०-३२ – स्वातंत्र्य संग्राम में भाग लेने के कारण कारावास


v १९३३- कोंग्रेसना बंधारणनुं घडतर


v १९३७-३९ – मुंबई राज्य के गृहमंत्री


v १९३८- भारतीय विद्याभवन की स्थापना


v १९३८- करांची में गुजराती साहित्य परिषद के प्रमुख


v १९४२-४६- गांधीजी के साथ मतभेद और कोंग्रेस त्याग और पुनः प्रवेश


v १९४६- उदयपुर में अखिल भारत हिन्दी साहित्य परिषद के प्रमुख


v १९४८- सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार


v १९४८- हैदराबाद के भारत में विलय में महत्वपूर्ण भूमिका


v १९४८- भारतनुं बंधारण समिति के सदस्य


v १९५२-५७ उत्तर प्रदेश के राज्यपाल


v १९५७- राजाजी के साथ स्वतंत्र पार्टी के उपप्रमुख


v १९५४- विश्व संस्कृत परिषद की स्थापना और उसके प्रमुख


v १९५९ - ‘समर्पण’ मासिक का प्रारंभ


v १९६०- राजनीति से सन्यास


      

न्यायमूर्ती बीआर गवई _ भारत देशाचे 52 वे सरन्यायाधीश

  न्यायमूर्ती बीआर गवई बनले देशाचे ५२ वे सरन्यायाधीश बनले आहेत. 13 मे रोजी भारताचे माजी मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना सेवानिवृत्त झाले. त्यानं...