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सुचेता कृपलानी..

                                             


             *सुचेता कृपलानी*  

(स्वतंत्रता सेनानी एवं भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री)

अन्य नाम : सुचेता मज़ूमदार

                *जन्म : 25 जून, 1908*

                    (अम्बाला, हरियाणा)

                *मृत्यु : 1 दिसंबर, 1974*

पति : जे. बी. कृपलानी

नागरिकता : भारतीय

प्रसिद्धि : भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री

पार्टी : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

पद : उत्तर प्रदेश की चौथी मुख्यमंत्री                                       कार्य काल : 2 अक्तूबर, 1963 – 13 मार्च, 1967

शिक्षा : बी.ए, एम.ए.

विद्यालय पंजाब विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय

भाषा : हिंदी, अंग्रेज़ी

अन्य जानकारी : 1948 से 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव रहीं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास की प्राध्यापिका भी रहीं।

              सुचेता कृपलानी अथवा 'सुचेता मज़ूमदार' प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ थीं। ये उत्तर प्रदेश की चौथी और भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री थीं। भारत के संविधान को मूल रूप देने वाली समिति में 15 महिलाएं भी शामिल थीं। इन्होंने संविधान के साथ भारतीय समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुचेता कृपलानी इन्हीं में से एक थीं।                                   💁🏻‍♀️ *जीवन परिचय*

सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून, 1908 को भारत के हरियाणा राज्य के अम्बाला शहर में हुआ। उनकी शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। 1963 से 1967 तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। सुचेता कृपलानी देश की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं। वे बंटवारे की त्रासदी में महात्मा गांधी के बेहद क़रीब रहीं। सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओं में शामिल थीं, जिन्होंने बापू के क़रीब रहकर देश की आज़ादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गईं। सुचेता दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्री काल के दौरान राज्य के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुईं, जब उनके रुख़ में नरमी आई। जबकि सुचेता के पति आचार्य कृपलानी खुद समाजवादी थे। आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सज़ा हुई। 1946 में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं। 1948 से 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थीं।


♨️ *मजबूत इच्छाशक्ति और जुझारूपन की मिसाल*

भारत छोड़ो आंदोलन में सुचेता कृपलानी ने लड़कियों को ड्रिल और लाठी चलाना सिखाया। नोआखली के दंगा पीड़ित इलाकों में गांधी जी के साथ चलते हुए पीड़ित महिलाओं की मदद की। 15 अगस्त, 1947 को संविधान सभा में वन्देमातरम् गाया। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने राज्य कर्मचारियों की हड़ताल को मजबूत इच्छाशक्ति के साथ वापस लेने पर मजबूर किया। वे पहले साम्यवाद से प्रभावित हुईं और फिर पूरी तरह गांधीवादी हो गईं। उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी की जिंदगी के ये पहलू उन्हें ऐसी महिला की पहचान देते हैं, जिसमें अपनत्व और जुझारूपन कूट-कूट कर भरा था। एक शख्सीयत कई रूप- आज इतने गुणों वाले राजनेता शायद ही मिलें। भारत छोड़ो आंदोलन में जब सारे पुरुष नेता जेल चले गए तो सुचेता कृपलानी ने अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया। ‘बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढ़ाएगा।’ वह भूमिगत हो गईं। उस दौरान उन्होंने कांग्रेस का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छुपते-छुपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया। इसके लिए अंडरग्राउण्ड वालंटियर फोर्स बनाई। लड़कियों को ड्रिल, लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और संकट में घिर जाने पर आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी। राजनीतिक कैदियों के परिवार को राहत देने का जिम्मा भी उठाती रहीं। दंगों के समय महिलाओं को राहत पहुंचाने, चीन हमले के बाद भारत आए तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास या फिर किसी से भी मिलने पर उसका दुख-दर्द पूछकर उसका हल तलाशने की कोशिश हमेशा रहती।


👫 *जे.बी. कृपलानी और सुचेता कृपलानी*

जीवतराम भगवानदास कृपलानी और सुचेता मजूमदार की पहली मुलाकात कहाँ हुई ये कहना मुश्किल है लेकिन ये जरूर कहा जा सकता है कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय कहीं न कहीं उनके प्यार की धुरी बना था। बाद में महात्मा गांधी के साथ काम करते हुए दोनों नजदीक आते गए, लेकिन गांधीजी यह जानकर हैरान रह गए कि उन्हीं के आश्रम में उन दोनों का प्यार फला-फूला। दोनों कांग्रेस के दिग्गज नेता थे लेकिन आने वाले सालों में उनकी भूमिका ऐसी बदली कि वो विरोधी कैंपों में शामिल हो गए। कृपलानी सिंध के हैदराबाद में पैदा हुए थे। असाधारण तौर पर पढ़ने में बेहद कुशाग्र और कुछ तरह से सोचने वाले शख्स थे। ऐसे शख्स भी जो अपने आप में रहना ज्यादा पसंद करते थे। उनके बारे में कहा जाता था कि वो बहुत आसानी के साथ अपने प्रिय लोगों से खुद को अलग कर लेते थे। कृपलानी को जो भी जानते हैं वो मानते थे वो बेहद अनुशासित और आदर्शों के पक्के शख्स थे। स्त्रियों से खुद को हमेशा दूर रखने वाले थे। ये माना जाने लगा था कि विवाह उनकी डिक्शनरी में नहीं है। कृपलानी आज़ादी से पहले लंबे समय तक कांग्रेस के महासचिव रहे और 1947 जब देश आज़ाद हो रहा था तब वह इस पार्टी के अध्यक्ष थे। हालांकि आज़ादी के बाद स्थितियां ऐसी बनीं कि कांग्रेस विरोध और विपक्ष की राजनीति करने लगे। आजीवन ऐसा करते रहे। वहीं सुचेता बाद में कांग्रेस में मंत्री भी बनीं और मुख्यमंत्री भी।


❤️ *सुचेता कृपलानी से प्रेम*

कृपलानी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर बनकर आए, हालांकि वह यहां एक ही साल रहे, लेकिन वो एक साल ही उस विश्वविद्यालय पर उनका प्रभाव छोड़ने के लिए काफी था। इसके बाद उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन के लिए नौकरी छोड़ दी। इसके कुछ साल बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में सुचेता मजुमदार प्रोफेसर बनकर आईं। उनके कानों में अक्सर आचार्य कृपलानी की बातें सुनाई पड़ती थीं। खासकर उनके जीनियस टीचर होने की और फिर उनके गांधीजी के खास सहयोगी बन जाने की। उन्हीं दिनों कृपलानी जब कभी बनारस आते तो बीएचयू के इतिहास विभाग जरूर जाते। उसी दौरान उनकी मुलाकात सुचेता से हुई, जिनमें एक प्रखरता भी थी और आज़ादी आंदोलन से जुड़ने की तीव्रता भी। कहा जा सकता है कि कृपलानी कहीं न कहीं इस बंगाली युवती से प्रभावित हो गए थे। दोनों में काफी बातें होने लगीं। जब कुछ मुलाकातों के बाद सुचेता ने उनसे गांधीजी से जुड़ने की इच्छा जाहिर की तो कृपलानी इसमें सहायक भी बने। हालांकि वह उन्हें राजनीति में आने से लगातार हतोत्साहित भी करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि महिलाओं को राजनीति में दामन साफ बचाकर रखना मुश्किल होता था। इसलिए वह उनसे लगातार कहते भी थे अपना दामन साफ रखना। आचार्य कृपलानी उनके मार्गदर्शक और विश्वस्त बन गए। समय के साथ जब दोनों का काफी समय एक दूसरे के साथ बीतने लगा तो वो करीब आने लगे, हालांकि किसी को भी अंदाज़ा नहीं था कि कृपलानी जैसे शख्स के जीवन में भी प्रेम दस्तक दे सकता है और दबे पांव उनके मन के घर पर क़ब्ज़ा कर सकता है। कृपलानी लंबे कद के सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी थे तो सुचेता साधारण कद काठी वाली थीं, लेकिन कुछ तो था उनके व्यक्तित्व में जिसने कृपलानी जैसी शख्सियत को उनके प्यार में बांध लिया था। दोनों जब एक दूसरे के प्यार में पड़े तो उन्हें कभी उम्र का लंबा फासला अपने बीच महसूस नहीं हुआ, हां लेकिन जब उन्होंने आपस में शादी करने की इच्छा अपने परिवारों के सामने जाहिर की तो तूफान आ गया। अपने घरों में उन्हें गुस्से और विरोध का सामना करना पड़ा।


🔆  *गांधीजी बने विरोधी*

सुचेता ने अपनी किताब 'सुचेता एन अनफिनिश्ड ऑटोबॉयोग्राफी' में लिखा, गांधीजी ने उनके विवाह का विरोध किया था, उन्हें लगता था कि पारिवारिक जिम्मेदारियां उन्हें आज़ादी की लड़ाई से विमुख कर देंगी। गांधी ने कृपलानी से कहा, अगर तुम उससे शादी करोगे तो मेरा दायां हाथ तोड़ दोगे। तब सुचेता ने उनसे कहा, वह ऐसा क्यों सोचते हैं बल्कि उन्हें तो ये सोचना चाहिए कि उन्हें आज़ादी की लड़ाई में एक की बजाए दो कार्यकर्ता मिल जाएंगे। कृपलानी इस बात से नाखुश तो बहुत थे कि गांधी उनके व्यक्तिगत मामलों में दखल दे रहे हैं लेकिन इसके बाद भी उन्होंने उनकी बात करीब-करीब मान ही ली, सुचेता भी इस पर सहमत हो गईं। लेकिन इसके बाद गांधीजी ने जो कुछ किया, उसने उनके आपस मे शादी करने के विचार को मजबूत कर दिया। सुचेता अपनी बॉयोग्राफी में लिखती हैं, गांधी चाहते थे कि वह किसी और से शादी कर लें। उन्होंने इसके लिए दबाव भी डाला। मैने इसे एकसिरे से खारिज कर दिया। मैने उनसे कहा, जो प्रस्ताव वह दे रहे हैं वो अन्यायपूर्ण भी है और अनैतिक भी। सुचेता जो खुशवंत सिंह के कहने पर इलैस्ट्रेटेड वीकली मैगजीन में अपनी आत्मकथा लिखने पर राजी हो गईं थीं। बाद में यही उनकी आत्मकथा के रूप में अहमदाबाद के नवजीवन पब्लिशिंग हाउस ने वर्ष 1978 में प्रकाशित की। इसमें उन्होंने लिखा, जब गांधी ने मेरे सामने ऐसा प्रस्ताव रखा तो मैं उनकी ओर पलटी, उनसे कहा कि जो वो कह रहे हैं वह ग़लत है। गांधी के पास इसका कोई जवाब नहीं था। हमारी बात वहीं खत्म हो गई। जवाहरलाल नेहरू की सहानुभूति हमारे साथ थी। उन्होंने गांधी से हमारी शादी के बारे में बात की।


*उम्र में था 20 साल का फासला*

1936 में गांधी ने सुचेता और आचार्य कृपलानी को बुलावा भेजा। गांधी ने उनसे कहा कि उन्हें उनकी शादी से कोई दिक्कत नहीं है लेकिन वह उन्हें आर्शीवाद नहीं दे सकेंगे। गांधी ने कहा कि वह उनके लिए प्रार्थना करेंगे। सुचेता ने अपनी किताब में लिखा, हम उनकी प्रार्थना भर से संतुष्ट थे। अप्रैल 1936 में सुचेता और आचार्य कृपलानी ने शादी कर ली। उस समय कृपलानी 48 साल के थे तो सुचेता मात्र 28 साल की थीं।


♦️ *विरोधी होकर भी साथ-साथ रहे*

बाद में हालात ने ऐसी करवट ली कि दोनों विरोधी दलों में शामिल हो गए। रहते दोनों साथ थे लेकिन एक कांग्रेस में रहा तो दूसरा आजीवन कांग्रेस विरोध की राजनीति करता रहा। आचार्य कृपलानी अक्सर मजाक में कहा करते थे कि कांग्रेसी इतने बदमाश हैं कि वो मेरी पत्नी ही भगा ले गए। बेशक दोनों पति-पत्नी थे लेकिन उनमें दोस्ती का भाव ज्यादा था। सुचेता आज़ादी के आंदोलन में शामिल उन तीन बांग्ला महिलाओं में थीं, जो उच्च शिक्षित थीं और जिन्होंने पूरे जोर-शोर आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और तीनों ने अपना कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश को बनाया। तीनों ने धर्म जाति की परवाह नहीं करते हुए अपने जीवनसाथी चुने। आज़ादी के बाद बदले हालात में आचार्य कृपलानी ने जहां कांग्रेस से अलग होकर पहले अपनी किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई और फिर राम मनोहर लोहिया के साथ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। सुचेता ने 1950 में दिल्ली से लोकसभा चुनाव किसान मजदूर पार्टी से लड़ा। चुनाव जीता, लेकिन इसके बाद वह कांग्रेस में चली गईं और बाद उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं। 1971 में जब तक वह राजनीति में सक्रिय रहीं तब तक कांग्रेस में शामिल रहीं। वर्ष 1971 में राजनीति से रिटायर होने के बाद वह आचार्य कृपलानी के साथ दिल्ली के अपने बंगले में रहने लगीं। एक पत्नी के नाते उन्होंने अपने पति का पूरा ख्याल रखा।


⚜️ *राजनीतिक सफ़र*

1939 में नौकरी छोड़कर राजनीति में आईं।

1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह किया और गिरफ्तार।

1941-1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महिला विभाग और विदेश विभाग की मंत्री।

1942 से 1944 तक निरन्तर निरन्तर सफल भूमिगत आंदोलन चलाया फिर 1944 में गिरफ्तार किया गया।

1946 में केन्द्रीय विधानसभा की सदस्य।

1946 में संविधान सभा की सदस्य और फिर इसकी प्रारूप समिति की सदस्य बनीं।

1948-1951 तक कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्य।

1948 में पहली बार विधानसभा के लिए चुनी गईं।

1950 से लेकर 1952 तक प्रॉविजनल लोकसभा की सदस्य रहीं।

1949 में संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा अधिवेशन में भारतीय प्रतिनिधि मंडल की सदस्य के रूप में गईं।

1952 और 1957 में नई दिल्ली से लोकसभा के लिए निर्वाचित। इस दौरान लघु उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री रहीं।

1962-1967 तक मेंहदावल से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित।

2 अक्तूबर, 1963 से 13 मार्च, 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री।

1967 में गोण्डा से लोकसभा के लिए चुनी गईं।

🪔 *निधन*

स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती सुचेता कृपलानी के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। 1 दिसंबर, 1974 को उनका निधन हो गया। अपने शोक संदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि "सुचेता जी ऐसे दुर्लभ साहस और चरित्र की महिला थीं, जिनसे भारतीय महिलाओं को सम्मान मिलता है।"

      

       

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इंद्रकुमार गुजराल..भारताचे १२ वे पंतप्रधान

    

       

               *इंद्रकुमार गुजराल*

           (भारताचे १२ वे पंतप्रधान)

*जन्म : ४ डिसेंबर १९१९*

(झेलम, पंजाब प्रदेश, ब्रिटिश भारत)

*मृत्यू : ३० नोव्हेंबर, २०१२ (वय ९२)*

(गुडगाव , हरियाणा)

राष्ट्रीयत्व : भारतीय

राजकीय पक्ष : जनता दल

पत्नी : शैला गुजराल

धंदा : कवी, लेखक

धर्म : हिंदू                                                      *१२ वे भारतीय पंतप्रधान -कार्यकाळ*

२१ एप्रिल १९९७ – १९ मार्च १९९८

राष्ट्रपती - शंकर दयाळ शर्मा व के.आर. नारायणन

मागील - एच. डी. देवेगौडा

पुढील - अटलबिहारी वाजपेयी

*भारतीय परराष्ट्रमंत्री - कार्यकाळ*

१ जून १९९६ – १९ मार्च १९९८

मागील - सिकंदर बख्त

पुढील - अटलबिहारी वाजपेयी

             *कार्यकाळ*

५ डिसेंबर १९८९ – ११ नोव्हेंबर १९९०

मागील - पी. व्ही. नरसिंहराव

पुढील - विद्याचरण शुक्ला                                              इंद्रकुमार गुजराल हे भारताचे ११ वे पंतप्रधान होते. त्यांचा जन्म सध्याच्या पाकिस्तानातील पंजाब प्रांतात असलेल्या झेलम या शहरात झाला. त्यांनी इ.स. १९४२ च्या चलेजाव चळवळीत भाग घेतला आणि त्याबद्दल त्यांना तुरूंगवासही झाला. फाळणीनंतर ते भारतात स्थायिक झाले होते.  ⚜️ *राजकीय कारकिर्द*                                                ♦️ *सुरुवात*

त्यांच्या राजकीय कारकिर्दीची सुरुवात दिल्ली महानगरपालिकेपासून झाली. इ.स. १९५९ ते इ.स. १९६४ या काळात त्यांनी महानगरपालिकेचे उपाध्यक्ष म्हणून काम बघितले. इ.स. १९६४ मध्ये ते राज्यसभेवर काँग्रेसच्या तिकिटावर निवडून गेले. इ.स. १९६७मध्ये तत्कालीन पंतप्रधान इंदिरा गांधींनी त्यांना संसदीय कामकाज आणि दळणवळण या खात्यांचे राज्यमंत्री म्हणून नेमले. नंतरच्या काळात त्यांनी माहिती आणि प्रसारण, नगरविकास आणि दूरसंचार या खात्यांचे राज्यमंत्री म्हणून काम केले.


♨️ *आणीबाणी*

१२ जून १९७५ रोजी ते माहिती आणि प्रसारण खात्याचे राज्यमंत्री असताना अलाहाबाद उच्च न्यायालयाने पंतप्रधान इंदिरा गांधींची १९७१ मध्ये झालेली लोकसभेवरील निवडणूक काही तांत्रिक कारणांवरून रद्दबादल ठरवली आणि त्यांना ६ वर्षांसाठी निवडणूक लढवायला बंदी घातली. त्यानंतर इंदिरा गांधींचा मुलगा संजय गांधी याने दिल्लीशेजारील उत्तर प्रदेश आणि हरियाणा या राज्यांमधील इंदिरा गांधी समर्थकांचे त्यांच्या समर्थनार्थ विशाल मेळावे दिल्ली शहरात आयोजित केले.असे म्हटले जाते की तेव्हा संजयने इंद्रकुमार गुजराल यांना त्या मेळाव्यांना सरकारी आकाशवाणी आणि दूरदर्शनवर प्रसिद्धी देण्याचा आदेश दिला. परंतु संजय हा केवळ पंतप्रधानांचा मुलगा होता आणि तो कोणतेही घटनात्मक पद भूषवित नसल्याने त्यांनी त्याचा आदेश पाळायला स्पष्टपणे नकार दिला. त्या कारणामुळे त्यांचे यांचे खाते बदलून त्यांना नियोजन खात्याचे राज्यमंत्री करण्यात आले, असेही म्हटले जाते. इ.स. १९७६ मध्ये सरकारने त्यांना भारताचे सोव्हियेट संघातील राजदूत म्हणून नेमले. ते त्या पदावर इ.स. १९८०पर्यंत होते.


🔮 *राजकारणातील दुसरा डाव*

१९८० च्या दशकाच्या मध्यात गुजराल यांनी काँग्रेस पक्ष सोडून जनता दलात प्रवेश केला. इ.स. १९८९ च्या लोकसभा निवडणुकीत ते पंजाबमधील जालंधर लोकसभा मतदारसंघातून निवडून गेले. १९८९ मधील निवडणुकीनंतर पंतप्रधान झालेल्या विश्वनाथ प्रताप सिंग यांनी त्यांना भारताचे परराष्ट्रमंत्री म्हणून नेमले. ऑंगस्ट इ.स. १९९०मध्ये सद्दाम हुसेन यांच्या इराकने कुवैतवर आक्रमण करून तो देश काबीज केला. त्यानंतर भारताचे प्रतिनिधी म्हणून गुजराल यांनी स्वतः हुसेन यांची बगदादमध्ये भेट घेतली. त्या भेटीदरम्यान त्यांनी हुसेन यांना मारलेली औपचारिक मिठी वादग्रस्त ठरली.


इ.स. १९९१च्या मध्यावधी लोकसभा निवडणुकीत त्यांनी बिहारमधील पाटणा मतदारसंघातून चंद्रशेखर सरकारमधील अर्थमंत्री यशवंत सिन्हा यांच्याविरुद्ध निवडणूक लढवली. मतदानादरम्यान मोठया प्रमाणावर गैरप्रकार झाल्यामुळे ती निवडणूक रद्द झाली.


इ.स. १९९२मध्ये गुजराल जनता दलाच्या तिकिटावर बिहारमधून राज्यसभेवर निवडून गेले. त्यानंतर त्यांची गणना जनता दलाच्या प्रमुख नेत्यांमध्ये होऊ लागली. इ.स. १९९६मधील निवडणुकीनंतर केंद्रात श्री.एच.डी.देवेगौडा यांच्या नेतृत्वाखाली संयुक्त आघाडीचे सरकार बनले. पंतप्रधान देवेगौडा यांनी गुजराल यांना पुन्हा एकदा भारताचे परराष्ट्रमंत्री म्हणून नेमले. आपल्या परराष्ट्रमंत्रीपदाच्या दुसऱ्या कारकिर्दीदरम्यान त्यांनी शेजारी देशांशी संबंध सुधारण्यावर जोर दिला. परराष्ट्रमंत्री गुजराल आणि पंतप्रधान देवेगौडा यांच्या प्रयत्नांमुळे बांगलादेशबरोबर अनेक वर्षे अनिर्णिणीत राहिलेल्या गंगा पाणीवाटपाच्या प्रश्नावर दोन्ही बाजूंना मान्य असा तोडगा निघाला.


⚜️ *पंतप्रधान*

मार्च ३०, इ.स. १९९७ रोजी संयुक्त आघाडी सरकारला बाहेरून पाठिंबा येणाऱ्या काँग्रेस पक्षाने पाठिंबा काढून घेतला. एप्रिल ११, इ.स. १९९७ रोजी देवेगौडा सरकार कोसळले. पण त्यानंतर काँग्रेस पक्ष आणि काही विरोधी पक्षांची संयुक्त आघाडी यांच्यादरम्यान तडजोड झाली. महत्त्वाचे निर्णय घेताना आपल्याला डावलले जाणार नाही या अटीवर, काँग्रेस पक्षाने संयुक्त आघाडीने बनवलेल्या सरकारला नव्या नेत्याचा नेतृत्वाखाली पाठिंबा द्यायचे मान्य केले. संयुक्त आघाडीने श्री. इंद्रकुमार गुजराल यांना नेतेपदी नेमले आणि एप्रिल २१, इ.स. १९९७ रोजी त्यांचा भारताचे पंतप्रधान म्हणून शपथविधी झाला.                           🌀 *चारा घोटाळा*

गुजराल यांनी धोरणीपणे काँग्रेस पक्षाबरोबर चांगले संबंध ठेवले. मात्र त्यांना पंतप्रधानपदाची सूत्रे हाती घेऊन एक आठवडा उलटता उलटताच त्यांना एका नव्या डोकेदुखीला तोंड द्यावे लागले. बिहारमधील चारा घोटाळ्याची चौकशी करण्याऱ्या सी.बी.आय.ने बिहारचे राज्यपाल श्री.अब्दुल रेहमान किडवाई यांच्याकडे राज्याचे मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव यांच्यावर चारा घोटाळ्यात भ्रष्टाचार केल्याबद्दल खटला भरायची अनुमती मागितली. सी.बी.आय.ने सादर केलेल्या सर्व पुराव्यांचा अभ्यास करून राज्यपालांनी सी.बी.आय.ला खटला भरायची परवानगी दिली. त्यानंतर यादव यांच्या राजीनाम्याची मागणी विरोधी पक्षांबरोबरच संयुक्त आघाडीमध्येही होऊ लागली. पण गुजराल यांनी यादव यांच्या सरकारविरुद्ध कोणतीही कारवाई न करता त्यांना केवळ राजीनामा देण्याचा सल्ला दिला. त्यांनी जेव्हा चारा घोटाळ्याची चौकशी करणारे सी.बी.आय. संचालक श्री.जोगिंदर सिंग यांची बदली केली, तेव्हा ते लालू प्रसाद यादव यांना पाठीशी घालत आहेत असा आरोप झाला. यादव यांना त्यांच्या जनता दल पक्षातूनच विरोध होऊ लागला. त्यांचे पक्षाध्यक्षपदी टिकणे कठीण दिसू लागले. तेव्हा जुलै ३, इ.स. १९९७ रोजी लालूप्रसाद यादव यांनी जनता दल पक्ष सोडून स्वतःचा राष्ट्रीय जनता दल हा पक्ष स्थापन केला. जनता दलाच्या ४५ पैकी १७ खासदारांनी त्यांच्या नव्या पक्षात प्रवेश केला. मात्र राष्ट्रीय जनता दल हा संयुक्त आघाडीचा घटक पक्ष म्हणून राहिला आणि गुजराल सरकारला त्यांचा पाठिंबाही कायम राहिला.त्यामुळे सरकारला असलेला तातडीचा धोका दूर झाला.


🔰 *चारा घोटाळ्यानंतर*

गुजराल पंतप्रधानपदी सुमारे ११ महिने राहिले. त्यापैकी ३ महिने ते काळजीवाहू पंतप्रधान होते. या थोड्या काळात पाकिस्तानबरोबर संबंध सुधारण्याचा त्यांनी प्रामाणिक प्रयत्न केला. ऑक्टोबर २१, १९९७ रोजी उत्तर प्रदेशातील कल्याण सिंग सरकारने सादर केलेल्या विश्वासदर्शक ठरावादरम्यान विधानसभेत अभूतपूर्व गोंधळ आणि हिंसाचार झाला. त्यानंतर राज्यात राष्ट्रपती राजवट लागू करायची शिफारस राष्ट्रपती के. आर. नारायणन यांना करायचा त्यांच्या सरकारचा निर्णय त्यांच्या कारकिर्दीतील सर्वात विवादास्पद निर्णय ठरला. पण राष्ट्रपती नारायणन यांनी त्या शिफारसीला मान्यता द्यायला नकार दिला आणि ती शिफारस केंद्रीय मंत्रीमंडळाकडे पुनर्विचारासाठी परत पाठवली. सरकारने त्यानंतर राज्यात राष्ट्रपती राजवट लागू न करायचा निर्णय घेतला.


नोव्हेंबर १९९७ मध्ये राजीव गांधी हत्याकांडाच्या कटाची चौकशी करणाऱ्या जैन आयोगाचा अंतरिम अहवाल इंडिया टुडे या नियतकालिकाने फोडला. राजीव गांधींची हत्या करणाऱ्या एल.टी.टी.ई. या तामिळ अतिरेकी संघटनेला हातपाय पसरायला छुपी मदत केल्याबद्दल आयोगाने तमिळनाडू मधील राजकीय पक्ष द्रविड मुनेत्र कळघम विरुद्ध ताशेरे ओढले आहेत, असे इंडिया टुडेने जाहीर केले. द्रविड मुनेत्र कळघम हा संयुक्त आघाडीचा घटकपक्ष होता आणि त्या पक्षाचे तीन मंत्री गुजराल सरकारमध्ये होते. काँग्रेस पक्षाने आयोगाचा अंतरिम अहवाल संसदेत सादर करण्याची मागणी केली. सरकारने अहवाल नोव्हेंबर १९, १९९७ रोजी सादर केला. इंडिया टुडेने जाहीर केल्याप्रमाणे जैन आयोगाने खरोखरच द्रविड मुनेत्र कळघम विरुद्ध ताशेरे ओढले असल्याचे समजताच त्या पक्षाच्या मंत्र्यांना मंत्रिमंडळातून काढायची मागणी काँग्रेस पक्षाने केली. तसे न केल्यास पाठिंबा काढून घ्यायची धमकी काँग्रेस पक्षाने दिली. काँग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी आणि पंतप्रधान गुजराल यांच्यादरम्यान यासंदर्भात आठवडाभर पत्रव्यवहार झाला. मात्र गुजराल यांनी काँग्रेस पक्षाची मागणी अमान्य केली. नोव्हेंबर २३, १९९७ रोजी कलकत्त्यातील एका समारंभात बोलताना गुजराल यांनी मध्यावधी निवडणुका लवकरच होतील असे विधान करून भविष्यात काय घडणार आहे याची कल्पना देशवासीयांना दिली. शेवटी नोव्हेंबर २८, १९९७ रोजी काँग्रेस पक्षाने गुजराल सरकारला दिलेला पाठिंबा काढून घेतला. त्यानंतर लगेचच पंतप्रधान गुजराल यांनी त्यांच्या पदाचा राजीनामा दिला. कोणतेही पर्यायी सरकार स्थापन न झाल्यामुळे राष्ट्रपती नारायणन यांनी डिसेंबर ४, १९९७ रोजी अकरावी लोकसभा बरखास्त केली आणि गुजराल यांनी सांगितल्याप्रमाणे मध्यावधी निवडणुकांचा मार्ग मोकळा झाला.


दुर्दैवाने गुजराल सरकार हा भारतीय लोकशाहीच्या इतिहासातील एका अत्यंत अस्थिर कालखंडातील अध्याय होता. राजकीय अस्थिरता, आघाडीतील घटक पक्षांमधील बेबनाव आणि लाथाळ्या यामुळे गुजराल यांच्यासारखा अनुभवी, कर्तबगार आणि स्वच्छ चारित्र्याचा नेता मिळूनही त्या सरकारला फारसे काही साध्य करता आले नाही. मात्र भारताच्या स्वातंत्र्याच्या सुवर्णमहोत्सवी वर्षात पंतप्रधानपद भूषविण्याचा मान गुजराल यांना मिळाला.


🔆 *पंतप्रधानपदानंतर*

१२व्या लोकसभेसाठी मध्यावधी निवडणुका फेब्रुवारी-मार्च इ.स. १९९८मध्ये झाल्या. गुजराल यांनी अकाली दलाच्या पाठिंब्याने पंजाबातील जालंधर मतदारसंघातून परत निवडणूक लढवली. त्यांनी पंतप्रधानपदी असताना पंजाबातील दहशतवादाचा बिमोड करायला झालेल्या खर्चाचा वाटा राज्य सरकारबरोबरच केंद्र सरकारही उचलेल असे जाहीर केले होते. त्यामुळे पंजाब सरकारच्या तिजोरीवरील बराच आर्थिक ताण कमी झाला. त्यामुळे कृतज्ञता म्हणून अकाली दलाने भारतीय जनता पक्षाच्या नेतृत्वाखालील आघाडीचा सभासद असूनही जनता दलाच्या तिकिटावर निवडणूक लढवणाऱ्या गुजराल यांना पाठिंबा देण्याचा निर्णय घेतला. त्यांनी काँग्रेसच्या उमराव सिंग यांचा सुमारे १,३१,००० मतांनी पराभव केला.


१२व्या लोकसभेत गुजराल यांनी भाजप आघाडीच्या सरकारला सातत्याने विरोध केला. मे २९, इ.स. १९९८ रोजी पोखरण येथील अणुचाचण्यांवर लोकसभेत झालेल्या चर्चेत त्यांनी सरकारच्या धोरणातील काही चुका दाखवून दिल्या. पण विरोधासाठी विरोध हे त्यांचे धोरण कधीच नव्हते. फेब्रुवारी इ.स. १९९९ मध्ये पंतप्रधान वाजपेयींनी लाहोरला भेट देऊन पाकिस्तानचे पंतप्रधान नवाझ शरीफ यांच्याबरोबर ऐतिहासिक लाहोर जाहीरनाम्यावर सही केली तेव्हा त्यांनी वाजपेयींच्या धोरणाचे जोरदार समर्थन केले. मात्र एप्रिल १९, इ.स. १९९९ रोजी अण्णा द्रमुकने पाठिंबा काढून घेतल्यावर पंतप्रधान वाजपेयींनी लोकसभेत विश्वासदर्शक ठराव मांडला, तेव्हा त्यांनी सरकारविरोधी मतदान केले. वाजपेयी सरकार कोसळल्यानंतर झालेली लोकसभेची मध्यावधी निवडणूक त्यांनी लढवली नाही. आणि त्यानंतर इंद्रकुमार गुजराल सक्रिय राजकारणातून निवृत्त झाले. 

            ♻️ *व्यक्तिगत*

इंद्रकुमार गुजराल उर्दू उत्तमपणे लिहू आणि बोलू शकत होते. उर्दू शेरोशायरी हा त्यांचा अत्यंत आवडीचा विषय होता. फावल्या वेळेत ते स्वतः उर्दू शायरी लिहित होते. त्यांच्या पत्नी शीला गुजराल या स्वतः कवयित्री असून त्यांचे बंधू सतीश गुजराल हे नामवंत चित्रकार होते.


🪔 *निधन*

गुजराल फुप्फुसांच्या विकाराने त्रस्त होते. निधनापूर्वी ते वर्षभरापासून त्यांना डायलिसीसवर ठेवण्यात आले होते. १९ नोव्हेंबर २०१२ ला तब्येत अधिक ढासळल्याने त्यांना गुडगाव येथील मेदांता इस्पितळात व्हेंटीलेटरवर ठेवण्यात आले होते. नोव्हेंबर २९, इ.स. २०१२ रोजी त्यांची प्राणज्योत मालवली. त्यांच्या निधनाची बातमी कळताच संसदेच्या दोन्ही सभागृहांचे कामकाज तत्काळ स्थगित करून त्यांना आदरांजली वाहण्यात आली.

          

  

महाराष्ट्र पोलीस भरतीची ऑनलाइन अर्ज प्रक्रिया सुरू..

 महाराष्ट्र राज्य पोलीस दलात एकूण 15 हजार 631 पदे भरण्यात येणार आहेत. यात पोलीस कॉन्स्टेबलची 12 हजार 399, पोलीस कॉन्स्टेबल ड्रायव्हरची 234, जेल कॉन्स्टेबलची 580, एसआरपीएफ म्हणजेच स्टेट रिझर्व्ह पोलीस फोर्स कॉन्स्टेबलची एकूण 2 हजार 393 पदे आणि बँड्समनची 25 पदे भरली जाणार आहे. महाराष्ट्रात सर्वात मोठ्या पोलीस भरतींपैकी एक आहे.

अर्जाची शेवटची तारीख

महाराष्ट्र पोलीस भरतीची ऑनलाइन अर्ज प्रक्रिया सुरू झाली. इच्छुक आणि पात्र उमेदवार 30 नोव्हेंबर 2025 पर्यंत अर्ज करू शकतात. अर्ज शुल्क मात्र ३ डिसेंबर 2025 पर्यंत भरता येईल. उशिरा अर्ज स्वीकारले जाणार नाहीत, म्हणून तात्काळ अर्ज करण्याचे आवाहन करण्यात आले आहे.

पात्रता निकष

उमेदवारांचे किमान वय 18 आणि कमाल वय 28 वर्षे असावे. आरक्षित उमेदवारांना वयात सवलत लागू आहे. उमेदवाराने कोणत्याही मान्यताप्राप्त मंडळातून किमान बारावी उत्तीर्ण असावे. राखीव प्रवर्गातील उमेदवारांना वयात व शुल्कात सूट आहे.

अर्ज शुल्क

सामान्य/ओपन प्रवर्गातील उमेदवारांकडून 450 रुपये, SC/ST/माजी सैनिक इ. राखीव प्रवर्गातील उमेदवारांकडून 350 रुपये शुल्क घेतले जाईल. ही रक्कम उमेदवारांना ऑनलाइन डेबिट/क्रेडिट कार्ड, नेट बँकिंग, UPI पद्धतीने भरता येईल.


पोलीस भरतीसाठी उमेदवारांनी सर्वप्रथम अधिकृत वेबसाइट: mahapolice.gov.in किंवा policerecruitment2025.mahait.org वर जा. होमपेजवर "Apply Online" वर क्लिक करा . मोबाईल नंबर व ईमेल आयडीने नोंदणी करा.लॉगिन करून अर्ज भरा, फोटो-सही अपलोड करा.शुल्क भरा आणि अर्जाची प्रिंट घ्या.


दिलेल्या मुदतीनंतर केलेले अर्ज बाद करण्यात येतील. अर्जामध्ये खोटी माहिती देणाऱ्यावर कारवाईदेखील होऊ शकते, याची उमेदवारांनी नोंद घ्या. अर्जात त्रुटी आढळल्यास तो बाद होऊ शकतो.



उत्तर: ऑनलाइन अर्ज भरण्याची शेवटची तारीख ३० नोव्हेंबर २०२५ आहे. अर्ज शुल्क मात्र ३ डिसेंबर २०२५ पर्यंत भरता येईल. त्यानंतर कोणताही अर्ज स्वीकारला जाणार नाही.


उत्तर: एकूण १५,६३१ पदे भरली जाणार आहेत. यात पोलीस कॉन्स्टेबल (१२,३९९), पोलीस कॉन्स्टेबल ड्रायव्हर (२३४), जेल कॉन्स्टेबल (५८०), एसआरपीएफ कॉन्स्टेबल (२,३९३) आणि बँड्समन (२५) पदांचा समावेश आहे.


उत्तर: किमान शैक्षणिक पात्रता १२वी उत्तीर्ण (कोणत्याही मान्यताप्राप्त मंडळातून) आहे. अर्ज शुल्क सामान्य प्रवर्गासाठी ₹४५० आणि राखीव प्रवर्ग (SC/ST/माजी सैनिक इ.) साठी ₹३५० आहे. शुल्क फक्त ऑनलाइन पद्धतीने भरावे लागेल.

अमृतलाल विठ्ठलदास ठक्कर

 

         *अमृतलाल विठ्ठलदास ठक्कर* 

                ( ठक्कर बाप्पा )


           *जन्म : 29 नवंबर 1869*

                  (भावनगर, गुजरात)


             *मृत्यु : 20 जनवरी 1951*


उपाधी : ठक्कर बाप्पा

पिता- विट्ठलदास लालजी ठक्कर

माता : मुलीबाई

कर्म भूमि : भारत

कर्म-क्षेत्र : समाज सेवक

नागरिकता : भारतीय

संबंधित लेख : महात्मा गाँधी, गोपाल कृष्ण गोखले

विशेष : ठक्कर बाप्पा ने 1914 में ‘भारत सेवक समाज’ के संस्थापक गोपालकृष्ण गोखले से समाज सेवा की दीक्षा ली और जीवनपर्यंत लोक-सेवा में ही लगे रहे। इसी कारण वे ठक्कर बाप्पा के नाम से प्रसिद्ध हुए।

अन्य जानकारी : गाँधी जी की प्रेरणा से ‘अस्पृश्यता निवारण संघ’, जो बाद में ‘हरिजन सेवक संघ’ कहलाया, बना तो ठक्कर बाप्पा उसके मंत्री बनाए गए। 1933 में जब हरिजन कार्य के लिए गाँधी जी ने पूरे देश का भ्रमण किया तो ठक्कर बाप्पा उनके साथ थे।

                  ठक्कर बापा, गांधी जी के बहुत करीब रहे थे। वे सन 1914-15  से गांधीजी के सम्पर्क में आए थे।  मगर, तब भी वे अपने लोगों के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद, आदिवासियों की अधिसंख्य आबादी आज भी बीहड़ जंगलों में रहने अभिशप्त है। अपने देश और समाज के प्रति ठक्कर बापा की नीयत साफ झलकती है। मगर, आदिवासियों के प्रति कांग्रेस की नीतियां में जरुर संदेह नजर आता हैं।


ठक्कर बापा का नाम लेते ही ऐसे ईमानदार शख्स की तस्वीर जेहन में उभरती है, जो बड़ा ईमानदार है।  जिसने एक बड़े सरकारी ओहदे से इस्तीफा देकर दिन-हीन और लाचार लोगों के लिए अपनी तमाम जिंदगी न्योछावर कर दी हो। शायद, इसी को लक्ष्य कर गांधी जी ने एक  उन्हें  'बापा ' कहा था।  'बापा ' अर्थात लाचार और असहायों का बाप।  चाहे गुजरात का भीषण दुर्भिक्ष हो या नोआखाली के दंगे, ठक्कर बापा ने लोगोंकी जो सेवा की , नि:संदेह वह स्तुतिय है।

                       ठक्कर बापा एक खाते-पीते परिवार से संबंध रखते थे। ठक्कर बापा का नाम अमृतलाल ठक्कर था। आपका जन्म 29 नवम्बर 1869 भावनगर (सौराष्ट्र ) में हुआ था। आप की माता का नाम मुलीबाई और पिता का नाम विठलदास ठक्कर था। अमृतलाल ठक्कर के पिताजी एक व्यवसायी थे। विट्ठलदास समाज के हितेषी और स्वभाव से दयालु थे।उन्होंने अपने गरीब समाज के बच्चों के लिए भावनगर में एक छात्रावास खोला था। भावनगर में ही सन 1900 के भीषण अकाल में उन्होंने केम्प लगवा कर कई राहत कार्य चलवाए थे।


पढने-लिखने में अमृतलाल बचपन से ही होशियार थे।  सन 1886 में आपने मेट्रिक में टॉप किया था। सन 1890  में आपने पूना से सिविल इंजीनियरिंग पास किया था। सन 1890 -1900 की अवधि में अमृतलाल ठक्कर ने काठियावाड़ स्टेट में कई जगह नौकरी की थी।  सन 1900-1903 के दौरान पूर्वी अफ्रीका के युगांडा रेलवे में बतौर इंजिनीयर उन्होंने अपनी सेवा दी। वे सांगली स्टेट के चीफ इंजिनियर नियुक्त हुए। इसी समय आप गोपाल कृष्ण गोखले और धोंडो केशव कर्वे  के सम्पर्क में आए।


सांगली में एकाध  साल नौकरी करने के बाद अमृतलाल ठक्कर बाम्बे म्युनिसिपल्टी में आ गए।  यहाँ कुर्ला में नौकरी के दौरान वे वहाँ की दलित बस्तियों में गए। डिप्रेस्ड कास्ट मिशन के रामजी शिंदे के सहयोग से उन बस्तियों में आपने स्वीपर बच्चों के लिए स्कूल खोला ।


सन 1914  में अमृतलाल ठक्कर ने अपने नौकरी से त्याग दे दिया।  अब वे 'सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसायटी' से जुड़ कर पूरी तरह जन-सेवा में जुट गए।  यही वह समय था जब गोपाल कृष्ण गोखले ने उनकी मुलाकात गांधी जी से करवाई। सन 1915 -16  में ठक्कर बापा ने बाम्बे के स्वीपरों के लिए को-ऑपरेटिव सोसायटी स्थापित की। इसी तरह अहमदाबाद में आपने मजदूर बच्चों के लिए स्कूल खोला।


सन 1918-19  की अवधि में टाटा आयरन एंड स्टील जमशेदपुर ने अपने कामगारों की परिस्थितियों के आंकलन के लिए ठक्कर बापा की सेवाएं ली थी। गुजरात और उड़ीसा में पड़े भीषण अकाल के समय ठक्कर बाबा ने वहाँ रिलीफ केम्प लगा कर काफी काम किया।  सन 1922 -23 के अकाल में गुजरात में भीलों के बीच रिलीफ का कार्य करते हुए आपने 'भील सेवा मंडल' स्थापित किया था।


सन 1930 में सिविल अवज्ञा आंदोलन दौरान वे गिरफ्तार हुए थे। उन्हें 40 दिन जेल में रहना पड़ा था। पूना पेक्ट (सन 1932 )में गांधी जी के आमरण अनशन के दौरान ठक्कर बापा ने समझौए के लिए महती भूमिका निभाई थी।


ठक्कर बापा ने बतौर 'हरिजन सेवक संघ' के महासचिव सन 1934 -1937 की अवधि में ' हरिजनों ' की समस्याओं से रुबरूं होने के लिए सारे देश का भमण किया था। सन 1938-42  की अवधि में वे  सी पी एंड बरार, उड़ीसा, बिहार, बाम्बे राज्यों में आदिवासी और पिछड़े वर्गों के कल्याण से संबंधित विभिन्न सरकारी समितियों में रहे थे ।


सन 1944 में ठक्कर बापा ने 'कस्तूरबा गांधी नॅशनल मेमोरियल फण्ड' की स्थापना की। इसी वर्ष ' गोंड सेवक संघ' जो अब 'वनवासी सेवा मंडल' के नाम से जाना जाता है;  की स्थापना की थी। ठक्कर बापा सन 1945 में 'महादेव देसाई मेमोरियल फण्ड' के महासचिव बने थे।  'आदिमजाति मंडल' रांची जिसके अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे, के उपाध्यक्ष रहे। सन 1946 -47 में नोआखली जहाँ जबरदस्त दंगे भड़के थे, ठक्कर बापा वहाँ  गांधी जी के साथ थे।


स्वतंत्रता के बाद ठक्कर बापा संविधान सभा के लिए चुने गए थे।  वे संविधान सभा के और कुछ उप-समितियों में थे। आप गांधी नॅशनल मेमोरियल फण्ड के ट्रस्टी और एक्जुटिव बॉडी के मेंबर थे। ऐसी निर्लिप्त भाव से सेवा करने वाली शख्सियत 20 जनवरी 1951  हम और आप से विदा लेती है।

      

      

भारतीय समाज सुधारक महात्मा फुले..

 

                *महात्मा*

     *जोतीराव गोविंदराव फुले*

        (भारतीय समाजसुधारक)


     *जन्म : ११ एप्रिल १८२७*

        (खानवडी, पुणे,महाराष्ट्र)

     *मृत्यू : २८ नोव्हेंबर  १८९०*

              (पुणे, महाराष्ट्र)


टोपणनाव : जोतीबा, महात्मा

संघटना : सत्यशोधक समाज

प्रमुख स्मारके : भिडे वाडा, 

                       गंज पेठ ,पुणे

धर्म : हिंदु

प्रभाव : शिवाजी महाराज,थॉमस पेन

प्रभावित : डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर , नारायण मेघाजी लोखंडे , केशव सीताराम ठाकरे

वडील : गोविंदराव फुले

आई : चिमणाबाई फुले

पत्नी : सावित्रीबाई फुले

अपत्ये : यशवंत


प्रस्तावना:-

 आपला भारत हा देश मुख्यतः समाज, जाती, धर्म यावर आधारलेला असून याला मुळचा रस्ता दाखवण्यासाठी समाजसुधारकांचे सर्वात मोठे योगदान आहे.या संपूर्ण देशात महाराष्ट्रातील सर्वात जास्त समाजसुधारक होऊन गेले व त्यांचा वारसा आजपर्यंत ग्रंथालयात पुस्तकं द्वारे ग्रंथांद्वारे काव्या द्वारे ते समाज सुधारक आज मानवी जीवनातअमर झाले आहेत.

               असेच एक थोर महात्मा म्हणजेच ज्योतिराव गोविंदराव फुले हे क्रांतीसुर्य महात्मा फुले नावाने प्रसिद्ध हे मराठी लेखक विचारवंत आणि समाज सुधारक होते त्यांनी सत्यशोधक समाज नावाची संस्था स्थापन केली शेतकरी आणि बहुजन समाजाच्या समस्यांना केंद्रस्थानी ठेवून पुरोगामी विचारांची मांडणी केली आणि महाराष्ट्रात श्री शिक्षणाची मुहूर्तमेढ रोवली. जनतेने त्यांना महात्मा ही उपाधी बहाल केली. ही पदवी त्यांना ई. स. 1888 मध्ये मिळाले शेतकऱ्यांच्या हितासाठी "शेतकऱ्यांचे आसूड" हा ग्रंथ महात्मा फुले यांनी लिहिला होता.

सूर्या परी सत्यप्रकाश पिरिता|शांती सर्व देतो| चंद्र जैसा|तोच खरा महात्मा म्हणावा. अशा थोर महात्मा ला कोटी कोटी वंदन...!!


जोतीराव गोविंदराव फुले हे क्रांतीसुर्य महात्मा फुले नावाने प्रसिद्ध, हे मराठी लेखक, विचारवंत आणि समाजसुधारक होते. त्यांनी सत्यशोधक समाज नावाची संस्था स्थापन केली; शेतकरी आणि बहुजन समाजांच्या समस्यांना केंद्रस्थानी ठेवून पुरोगामी विचारांची मांडणी केली आणि महाराष्ट्रातील स्त्री शिक्षणाची मुहूर्तमेढ रोवली. जनतेने त्यांना महात्मा ही उपाधी बहाल केली होती. ही पदवी त्यांना इ.स.१८८८ या साली मिळाली. 'शेतकऱ्यांचे आसूड' हा ग्रंथ महात्मा फुले यांनी लिहिला होता .

                  

💁‍♂ *बालपण आणि शिक्षण*

                जोतिबा फुले यांचे मूळ गाव सातारा जिल्ह्यातील कटगुण हे होते. त्याच गावी महात्मा फुल्यांचा जन्म ११ एप्रिल १८२७ रोजी झाला. जोतिबांच्या वडिलांचे नाव गोविंदराव आणि आईचे नाव चिमणाबाई होते. शेवटच्या पेशव्यांच्या काळात महात्मा फुले यांचे वडील आणि दोन चुलते फुले पुरवण्याचे काम करीत होते, त्यामुळे गोऱ्हे हे त्यांचे मूळ आडनाव असले तरी, पुढे ते फुले म्हणून ओळखले जाऊ लागले व तेच नाव पुढे रूढ झाले. कटगुणहून त्यांचा परिवार पुरंदर तालुक्यातील खानवडी येथे आला. तेथे त्यांचे घर असून, त्यांच्या नावे सातबाराचा उतारा आहे. खानवडी येथे फुले आडनावाची बरीच कुटुंबे आहेत.


जोतीराव केवळ नऊ महिन्यांचे होते, तेव्हा त्यांच्या आईचे निधन झाले. त्यांचा विवाह वयाच्या तेराव्या वर्षी सावित्रीबाई यांच्याशी झाला. प्राथमिक शिक्षणानंतर काही काळ त्यांनी भाजी विक्रीचा व्यवसाय केला. इ.स. १८४२ मध्ये माध्यमिक शिक्षणासाठी पुण्याच्या स्कॉटिश मिशन हायस्कूलमध्ये त्यांनी प्रवेश घेतला. बुद्धी अतिशय तल्लख, त्यामुळे पाच-सहा वर्षातच त्यांनी अभ्यासक्रम पूर्ण केला. ग्रामची या प्रसिद्ध तत्ववेत्ता याने महात्मा फुले यांना 'सेंद्रीय बुद्धीवंत' असे संबोधले आहे.  जोतीराव करारी वृत्तीचे होते. त्यांस गुरुजनांविषयी व वडीलधाऱ्या माणसांविषयी फार आदर वाटत असे. ते आपला अभ्यास मन लावून करत असत. परीक्षेत त्यांना पहिल्या श्रेणीचे गुण मिळत असत. शाळेतील शिस्तप्रिय, हुशार विध्यार्थी म्हणून त्यांचा नवलोंकीक होता.

                 त्यावेळी पुण्यात बरेच कबीरपंथी फकीर येत असत. चांगले लिहायला व वाचायला येणाऱ्या जोतीकडून कडून काही कबीरपंथी फकीर रोज महात्मा कबीरांचा 'बीजमती' हा ग्रंथ वाचून घेत असत. त्यामुळे जोतीरावांच्या मनावर कबीराच्या विचारांची शिकवण चांगलीच बिंबली व जोतिष कबीरांचे अनेक दोहे पाठ झाले. त्यातील एक


नाना वर्ण एक गाय एक रंग है दूध


तुम कैसे बम्मन हं कैसे सूद | |


🚸 *शैक्षणिक कार्य*

      महात्मा फुले यांच्या शिक्षणाचे महत्त्व पटवून देणाऱ्या खालील ओळी प्रसिद्ध आहेत:


विद्येविना मती गेली ।

मतीविना नीती गेली ।

नीतीविना गती गेली ।

गतीविना वित्त गेले ।

वित्ताविना शूद्र खचले।

इतके अनर्थ एका अविद्येने केले ।।


बहुजन समाजाचे अज्ञान, दारिद्रय आणि समाजातील जातिभेद पाहून त्यांनी ही सामाजिक परिस्थिती सुधारण्याचा निश्चय केला. त्यांनी इ.स. १८४८ साली पुण्यामध्ये बुधवार पेठेतील भिडे यांच्या वाडयात पहिली मुलींची शाळा काढून तेथील शिक्षिकेची जबाबदारी सावित्रीबाईंवर सोपविली. महाराष्ट्रातील स्त्रीशिक्षणाची ही मुहूर्तमेढ ठरली. तसेच अस्पृश्य मुलांसाठी त्यांनी पुण्याच्या वेताळ पेठेत इ.स.१८५२ मध्ये शाळा स्थापन केली. त्यांच्या या कार्याला सनातन्यांकडून सतत विरोध होत असे. पण जोतीराव आपल्या भूमिकेवर ठाम असत. जोतीरावांनी पत्‍नी सावित्रीबाईंना शिक्षण देऊन शिक्षणकार्यास प्रवृत्त केले. शाळेच्या मुख्याध्यापकपदी आरूढ झालेली भारतातील पहिली महिला म्हणजे सावित्रीबाई. त्याचप्रमाणे स्वतंत्रपणे फक्त स्त्रियांसाठी शाळा काढणारे महात्मा फुले हे पहिले भारतीय होते.


🔮 *सामाजिक कार्य*

        मानवी हक्कावर इ.स.१७९१ मध्ये थॉमस पेन यांनी लिहिलेले पुस्तक त्यांच्या वाचनात आले. त्याचा प्रभाव त्यांच्या मनावर झाला. सामाजिक न्यायाबाबत त्यांच्या मनात विचार येऊ लागले. त्यामुळेच विषमता दूर करण्यासाठी स्त्रीशिक्षण आणि मागासलेल्या जातीतील मुलामुलींचे शिक्षण यावर त्यांनी भर देण्याचे ठरवले. सामाजिक भेदभाव त्यामुळे कमी होईल असे त्यांचे निश्‍चित मत आणि अनुमान होते.


‘कोणताही धर्म ईश्वराने निर्माण केलेला नाही आणि चातुर्वण्य व जातिभेद ही निर्मिती मानवाचीच आहे’ असे रोखठोकपणे बोलताना मात्र या विश्वाची निर्मिती करणारी कोणती तरी शक्ती आहे अशी त्यांची (अस्तिक्यवादी) विचारसरणी होती. मानवाने गुण्यागोविंदाने रहावे असे त्यांचे मत होते. त्यांनी लिहिलेल्या ‘शेतकऱ्याचा आसूड’ या पुस्तकातून महाराष्ट्रातील शेतकऱ्यांची विदारक दुर्दशा आणि दारिद्र्याची वास्तवता विशद केली आहे. या पुस्तकाद्वारे विशाल दृष्टिकोनाचा क्रांतिकारक म्हणूनही जोतीरावांचे दर्शन होते. ‘नीती हाच मानवी जीवनाचा आधार आहे’ हा विचार मांडणारे जोतीराव एक तत्त्वचिंंतक व्यक्तिमत्त्व होते. महात्मा फुलेंनी सामाजिक प्रबोधन करण्यासाठी शेतकऱ्यांचा आसूड इ. ग्रंथ लिहून सामाजिक प्रबोधन केले. मूलभूत मानवी हक्कांच्या आधारावरून विश्वकुटुंब कसे निर्माण होईल व त्याकरिता कशा प्रकारचे वर्तनक्रम व वैचारिक भूमिका स्वीकारली पाहिजे हे ज्योतीराव फुलेंनी आपल्या ' सार्वजनिक सत्यधर्म ' संहितेत अनेक वचनांच्या आधारे मांडली आहे.त्यातील काही महत्वाची वचने लीहिली.


संसाराविषयी फुले यांचा दृष्टीकोन अर्थातच आशावादी होता. कष्टपूर्वक चालणा-या गृहस्थाश्रमाला ते फार मान देतात. कौटुंबिक जीवनाची व समाजाची खरी प्रगती परिश्रमाची वाढ होऊनच होणार आहे. कष्टाने जगण्याची ज्यांना धमक नाही, असे लोक संन्यासी व भिक्षुक होतात व प्रपंच खरा नाही, व्य्रर्थ आहे असा भ्रम प्रपंचातील लोकांच्या बुध्दीत उत्पन्न करतात. असे करण्यात त्यांचा आळशी-धूर्तपणाच असतो. 

स्त्री अथवा पुरुष एकंदर सर्व गावाचे , प्रांताचे , देशाचे , खंडाचे संबंधात अथवा कोणत्याही धर्मातील स्वताच्या संबंधात , स्त्री आणि पुरुष या उभयतांनी अथवा सर्व स्त्रियांनी अथवा एकमेकात एकमेकांनी कोणत्याही प्रकारची आवडनिवड (भेदभाव) न करता या भूखंडावर आपले एक कुटंब समजून एकमताने सत्यवर्तन करून राहावे .

आपणा सर्वांच्या निर्माणकर्त्याने एकंदर सर्व प्राणीमात्रांना उत्पन्न करतेवेळी मनुष्यास जन्मतःच स्वतंत्र प्राणी म्हणून निर्माण केले आहे आणि त्यास आपापसात साऱ्या हक्कांचा उपभोग घेण्यास समर्थ केले आहे .

आपणा सर्वांच्या निर्माणकर्त्याने सर्व मानवी स्त्री - पुरुषांस धर्म व राजकीय स्वतंत्रता दिली आहे . जो आपल्यापासून दुसऱ्या एखाद्या व्यक्तीस कोणत्याही तऱ्हेचे नुकसान देत नाही , अथवा जो कोणी आपल्यावरून दुसऱ्या मानवांचे हक्क समजून इतरांना पीडा देत नाही त्याला 'सत्यवर्तन ' करणारा म्हणावे .

आपल्या सर्वांच्या निर्मिकाने एकंदर सर्व स्त्री - पुरुषांस एकंदर सर्व मानवी अधिकारांचे मुख्य धनी केले आहे . त्यातून एखादा मानव अथवा काही मानवांची टोळी एखाद्या व्यक्तिवर जबरी करू शकत नाही , त्याप्रमाणे जबरी न करणारास सत्यवर्तन करणारे म्हणावे .

स्त्री अथवा पुरुष जे आपल्या कुटुंबासह , आपल्या भाऊबंदास , आपल्या सोयऱ्याधायऱ्यास आणि आपल्या इष्टमित्र साथींना मोठ्या तोऱ्याने पिढीजात श्रेष्ठ मानून आपल्यास पवित्र मानीत नाहीत आणि एकंदर सर्व मानवी प्राण्यास पिढीजात कपटाने अपवित्र मानून त्यास नीच मानीत नाहीत , त्यास सत्यवर्तन करणारे म्हणावे .

स्त्री अथवा पुरुष जे शेतकरी अथवा कलाकौशल्य करून पोटे भरण्यास श्रेष्ठ मानतात , परंतु शेतकरी वगैरे यांना मदत करणाऱ्यांंचा आदरसत्कार करतात त्यास सत्यवर्तन करणारे म्हणावे .

महात्मा फुले यांनी मानवास सत्यधर्माचा जो बोध केला त्यातील ही काही वचने आपण वाचली की लक्षात येते , ज्योतीरावाचा आवाका किती मोठ्ठा होता . त्यांना अखिल विश्वाला कवेत घेणाऱ्या माणसाला माणूस म्हणून प्रतिष्ठा देणारा धर्म साकार करायचा होता . त्यासाठी मानवी वर्तनात, म्हणजेच व्यवहारात आमूलाग्र बदल घडवून आणायचा होता .त्यासाठी मानवी स्वभाव आणि मानसिकता यात काय बदल केले पाहिजेत याबाबतही ज्योतीरावांनी विपुल लेखन केले आहे . 'अखंड' या काव्यप्रकारात त्यांनी 'मानवाचा धर्म' , आत्मपरीक्षण , नीती , समाधान , सहिष्णूता , सदसदविवेक , उद्योग , स्वच्छता , गृहकार्यदक्षता , इत्यादी गोष्टींवरही भाष्य केले आहे . ज्योतीरावांनी वेगवेगळ्या अखंडातून जे विचार मांडले , मानवी जीवनाला दिशा देणारा जो उपदेश केला , त्यातील काही निवडक भाग येथे विचारात घेतला पाहिजे . ज्योतीराव आपल्या अखंडात म्हणतात ,


सर्वांचा निर्मिक आहे एक धनी || त्याचे भय मनी || धरा सर्व ||१||


न्यायाने वस्तूंचा उपयोग घ्यावा || आनंद करावा || भांडू नये ||२||


धर्म राज्य भेद मानवा नसावे || सत्याने वर्तावे || ईशासाटी ||३||


सर्व सुखी व्हावे भिक्षा जी मागतो || आर्यास सांगतो || जोती म्हणे ||४||


दरिद्री मुलांनी विद्येस शिकावे || भिक्षान्न मागावे || पोटापुरते ||१||


विद्वान वृद्धांनी विद्यादान द्यावे || भिक्षेकरी व्हावे || गावांमध्ये ||२||


स्त्री - पुरुषांसाठी शाळा त्या घालाव्या || विद्या शिकवाव्या ||भेद नाही || ३ || स्वतः हितासाठी खर्च जे करती ||अधोगती जाती || जोती म्हणे || ४ ||



निर्मल निर्धोशी निव्वळ विचारी || सदा सत्याचारी || प्रपंचात ||१||


सूर्यापरी सत्यप्रकाश पेरिता || शांती सर्वा देतो || चंद्र जैसा |||२||


होईना भूदेव जाती मारवाडी || मानवा न पीडी || सर्ववत ||३||


अशा सज्जनास मानव म्हणावे || त्यांचे गुण घ्यावे || जोती म्हणे ||४||



क्रोधाचा विटाळ सत्यधर्म पाळी | तो खरा बळी || मानवात ||१||


सर्वांभूती द्या हृदयी कोमल || घालितो अगळ || इंद्रियांस ||२||


जगात वर्ततो सद्गुणी मवाळ || वासनेस मूळ || डाग नाही ||३||


सत्यशोध होता , धिक्कारी तो कवी || तोच सत्यवादी ||'जोती म्हणे ||४||



निर्मिले बांधव स्त्री पुरुष प्राणी || त्यात गोरे कोणी || रंगवर्ण ||१||


त्यांचे हितासाठी बुद्धिमान केले || स्वातंत्र्य ठेविले || ज्या त्या कामी ||२||


कोणास न पीडी कमावले खाई || सर्वा सुख देई || आनंदात ||३||


खरी हीच नीती मानवाचा धर्म || बाकीचे अधर्म || जोती म्हणे ||४||



सत्याविन नाही धर्म तो रोकडा || जनांशी वाकडा || मतभेद ||१||


सत्य सोडू जाता वादामध्ये पडे | बुद्धीस वाकडे || जन्मभर ||२||


सत्य तोच धर्म करावा कायम || मानवा आराम || सर्व ठायी ||३||


मानवांचा धर्म सत्य हीच नीती || बाकीची कुनीती || जोती म्हणे ||४||



सत्याचा जिव्हाळा मनाची स्वच्छता || चित्तास स्वस्थता ||''जेथे आहे ||१||


जेथे जागा धीर सदा हृदयात ||''सत्य वर्तनात | खर्ची द्यावा ||२||


पिडा दु:खे सोशी संकटे निवारी || गांजल्यास तारी || जगामागी ||३||


धीर धरूनिया सर्वा सुख देती || यशवंत होती || जोती म्हणे ||४||


जोतीराव शूद्रादिअतिशुद्र यांना आपल्या काव्यात यशस्वी जीवनाचा उपदेश हि करतात... ते म्हणतात,


क्षत्रियांनो तुम्ही कष्टकरी व्हावे | कुटुंब पोसावे आनंदाने || १ ||


नित्य मुली- मुलं शाळेत घालावे | अन्नदान द्यावे विध्यार्थ्यांस ||२ ||


सार्वभोम सत्य स्वतः आचरावे |सुखे वागवावे आर्यभट्टा || ३ ||


अश्या वर्तनाने सर्वां सुख द्याल | स्वतः सुखी व्हाल जोती म्हणे || ४ ||


   *==सत्यशोधक समाज==*

               २४ सप्टेंबर इ.स.१८७३ रोजी महात्मा जोतिराव फुले यांनी सत्यशोधक समाजाची स्थापना केली.समाजातील विषमता नष्ट करणे व तळागाळातील समाजापर्यंत शिक्षण पोहचवणे हे सत्यशोधक समाजाचे ध्येय होते.सत्यशोधक समाज सोसायटीचे ते पहिले अध्यक्ष आणि खजिनदार होते. वेदांना झुगारून त्यांनी हे कार्य करण्यास सुरवात केली. त्यांनी जातीय भेद आणि चातुर्वर्णीय भेदभावास विरोध करण्यास सुरवात केली. महात्मा फुले यांनी सत्यशोधक समाजाची स्थापना केली तेव्हा स्त्री विभागाचे नेतृत्व सावित्रीबाई यांनी केले. सावित्रीबाई यांच्याबरोबर १९ स्त्रियांनी सत्यशोधक समाजाचे कार्य सुरू केले. त्याचवेळी त्या कन्याशाळेच्या शिक्षिका म्हणूनही कार्य करीत होत्या. दीनबंधू प्रकाशनाने सत्यशोधक चळवळीच्यावेळी लेखन प्रकाशनचे कार्य केले. महाराष्ट्रातील तळागाळापर्यंत चळवळ पोचली. छत्रपती शाहू महाराजांनी सत्यशोधक चळवळीस पाठिंबा दिला.न्यायापासून, अत्याचारापासून व गुलामगिरीतून शूद्रातिशूद्र समाजाची मुक्तता करणे व त्यांना हक्काची जाणीव करून देणे हे सत्यशोधक समाजाचे ध्येय होते. 'सर्वसाक्षी जगत्पती । त्याला नकोच मध्यस्ती ॥' हे या समाजाचे घोषवाक्य होते. सत्यशोधक समाजाने गुलामगिरीविरुद्ध आवाज उठविला आणि सामाजिक न्यायाची व सामाजिक पुनर्रचनेची मागणी केली. या समाजातर्फे पुरोहितांशिवाय विवाह लावण्यास सुरुवात केली. मराठीत मंगलाष्टके रचली.


📝 *लेखन साहित्य*

              'सार्वजनिक सत्यधर्म' हा सत्यशोधक समाजाचा प्रमाण ग्रंथ मानला जातो. या समाजाचे मुखपत्र म्हणून 'दीनबंधू' हे साप्ताहिक चालविले जात असे. तुकारामाच्या अभंगांचा त्यांचा गाढा अभ्यास होता. अभंगांच्या धर्तीवर त्यांनी अनेक 'अखंड' रचले. त्यांना सामाजिक विषमतेचे जागतिक भान होते. आपला 'गुलामगिरी' ग्रंथ अमेरिकेतील कृष्णवर्णीयांना त्यांनी समर्पित केला. 'अस्पृश्यांची कैफियत' हा महात्मा फुलेंचा अप्रकाशित ग्रंथ आहे. सार्वजनिक सत्यधर्म हा त्यांचा ग्रंथ त्यांच्या मृत्यूनंतर इ.स. १८९१ मध्ये प्रकाशित झाला.


रा.ना. चव्हाण यांनी ‘सारसंग्राहक’ या पुस्तकात सार्वजनिक सत्यधर्म या पुस्तकाचे सार एकत्र केले आहे. पहिल्या प्रकरणात सार दिले असून दुसऱ्या प्रकरणात फुले यांचे धर्मपर विचार दिले आहेत. एकेश्वर फुले, एकेश्वर समाजवाद, महात्मा फुले व ब्राह्मधर्म या प्रकरणांतून हे सर्व सार समजते.


जोतिबा फुले यांच्या सामाजिक कार्याची दखल घेऊन लोकांनी त्याना मुंबईतील सेभेत १८८८ मध्ये ‘महात्मा’ ही उपाधी दिली. त्यामुळे ज्योतिबा फुले हे महात्मा फुले या नावाने ओळखले जाऊ लागले. 


📝 *त्यांनी अनेक पुस्तके लिहिली, त्यांपैकी काही ही :-*

लेखनकाळ साहित्य प्रकार नाव

इ.स.१८५५ नाटक तृतीय रत्‍न

जून, इ.स. १८६९ पवाडा छत्रपती शिवाजीराजे भोसले यांचा पवाडा

जून इ.स. १८६९ पवाडा विद्याखात्यातील ब्राह्मण पंतोजी

इ.स.१८६९ पुस्तक ब्राह्मणांचे कसब

इ.स.१८७३ पुस्तक गुलामगिरी

सप्टेंबर २४ , इ.स. १८७६ अहवाल सत्यशोधक समाजाची तिसर्‍या वार्षिक समारंभाची हकीकत

मार्च २० इ.स. १८७७ अहवाल पुणे सत्यशोधक समाजाचा रिपोर्ट

एप्रिल १२ , इ.स. १८८९ निबंध पुणे सत्यशोधक समाजाचा निबंध व वक्तृत्व समारंभ

२४ मे इ.स. १८७७ पत्रक दुष्काळविषयक पत्रक

१९ ऑक्टोबर इ.स. १८८२ निवेदन हंटर शिक्षण आयोगापुढे सादर केलेले निवेदन

१८ जुलै इ.स. १८८३ पुस्तक शेतकऱ्याचा असूड

४ डिसेंबर इ.स. १८८४ निबंध महात्मा फुले यांचे मलबारींच्या दोन टिपणांविषयीचे मत

११ जून इ.स. १८८५ पत्र मराठी ग्रंथागार सभेस पत्र

१३ जून इ.स. १८८५ पुस्तक सत्सार अंक १

ऑक्टोंबर इ.स. १८८५ पुस्तक सत्सार अंक २

१ ऑक्टोंबर इ.स. १८८५ पुस्तक इशारा

२९ मार्च इ.स.१८८६ जाहीर प्रकटन ग्रामजोश्यांसंबंधी जाहीर खबर

२ जून इ.स. १८८६ पत्र मामा परमानंद यांस पत्र

जून इ.स. १८८७ पुस्तक सत्यशोधक समाजोक्त मंगलाष्टकासह सर्व पूजा-विधी

इ.स. १८८७ काव्यरचना अखंडादी काव्य रचना

१० जुलै इ.स. १८८७ मृत्युपत्र महात्मा फुले यांचे उईलपत्र

इ.स. १८९१ (प्रकाशन) पुस्तक सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक


🌀 *फुलेंचा संपूर्ण जीवनक्रम*


अ.क्र. दिनांक / महिना इ.स. घटना

१. एप्रिल ११ इ.स.१८२७ जन्म [पुणे].

२. इ.स. १८३४ ते १८३८ पंतोजींच्या शाळेत मराठी शिक्षण.

३. इ.स. १८४० नायगावच्या खंडोबा नेवसे पाटील यांच्या सावित्री नावाच्या कन्येशी विवाह.

४. इ.स. १८४१ ते १८४७ मिशनरी शाळेत माध्यमिक (इंग्रजी) शिक्षण.

५. इ.स. १८४७ लहुजी वस्ताद साळवे दांडपट्टा तालीम व इतर शारीरिक शिक्षण आणि क्रांतिकारक विचार .

६. इ.स. १८४७ टॉमस पेन कृत “राईट ऑफ मॅन” या ग्रंथाचे मनन.

७. इ.स. १८४८ उच्चवर्णीय मित्राच्या लग्नाच्या मिरवणुकीत झालेला अपमान .

८. इ.स.१८४८ शूद्रातिशूद्रांसाठी मुलींची शाळा.

९. इ.स. १८४९ शिक्षणदानाचे व्रत घेतल्याने पत्‍नी सावित्रीबाई फुले यांच्यासह करावा लागलेला गृहत्याग.

१०. इ.स. १८४९ मराठी प्रकाशनांना अनुदान देण्याची मागणी करणाऱ्या सुधारकांच्या सभेला दिलेले संरक्षण.

११. इ.स. १८५१ चिपळूणकरांच्या वाड्यातील व रास्ता पेठेतील मुलींच्या शाळांची स्थापना.

१२. नोव्हेंबर १६ इ.स.१८५२ मेजर कँडी यांच्या अध्यक्षतेखाली शिक्षण कार्याबद्दल सरकारी विद्याखात्याकडून सत्कार.

१३. इ.स. १८४७ थॉमस पेन यांच्या 'राईट ऑफ मॅन' या ग्रंथाचा अभ्यास.(पुनरावृत्ती)

१४. इ.स. १८४८ मित्राच्या विवाहप्रसंगी निघालेल्या मिरवणुकीत उच्चवर्णीयांकडून अपमान झाला.(पुनरावृत्ती)

१५. इ.स.१८४८ भारतातील मुलींची पहिली शाळा सुरू केली. बहुजन समाजाच्या शिक्षणासाठी काम सुरू केले.(पुनावृत्ती)

१६. सप्टेंबर ७ इ.स.१८५१ भिडे वाड्यात व रास्ता पेठेत मुलींच्या शाळेची सुरुवात.(पुनरावृत्ती)

१७. इ.स.१८५२ पूना लायब्ररीची स्थापना.

१८. मार्च १५ इ.स.१८५२ वेताळपेठेत अस्पृश्यांसाठी पहिली शाळा सुरू केली.

१९. नोव्हेंबर १६ इ.स.१८५२ मेजर कॅन्डी यांच्याकडून शैक्षणिक कार्यासाठी ब्रिटिश सरकारतर्फे विश्रामबाग वाड्यात सत्कार.(पुनारावृत्ती)

२०. इ.स.१८५३ 'दि सोसायटी फॉर प्रमोटिंग द एज्युकेशन ऑफ महार मांग ॲन्ड अदर्स' स्थापन केली.

२१. इ.स.१८५४ स्कॉटिश मिशनच्या शाळेत अर्धवेळ शिक्षकाची नोकरी.

२२. इ.स.१८५५ रात्रशाळेची सुरुवात केली.

२३. इ.स.१८५६ जोतिबांवर मारेकरी घालून हत्येचा प्रयत्‍न झाला.

२४. इ.स.१८५८ शाळांच्या व्यवस्थापन मंडळातून निवृत्ती घेतली.

२५. इ.स.१८६० विधवाविवाहास साहाय्य केले.

२६. इ.स.१८६३ बालहत्या प्रतिबंधक गृहाची स्थापना केली.

२७. इ.स.१८६५ विधवांच्या केशवपनाविरुद्ध न्हाव्यांचा संप घडवून आणला.

२८. इ.स.१८६४ गोखले बागेत विधवाविवाह घडवून आणला.

२९. इ.स.१८६८ दुष्काळ काळात राहत्या घरातील हौद अस्पृश्यांसाठी खुला केला.

३०. २४ सप्टेंबर इ.स.१८७३ सत्यशोधक समाजची स्थापना केली.

३१. इ.स.१८७५ शेतकऱ्यांच्या शोषणाविरुद्ध खतफोडीचे बंड घडवून आणले ( अहमदनगर).

३२. इ.स. १८७५ स्वामी दयानंद सरस्वतींची पुण्यात मिरवणूक काढण्यास साहाय्य केले.

३३. इ.स. १८७६ ते १८८२ पुणे नगर पालिकेचे सदस्य होते.

३४. इ.स. १८८० दारूची दुकाने सुरू करण्यास विरोध केला.

३५. इ.स.१८८० नारायण मेघाजी लोखंडे यांना 'मिलहॅण्ड असोसिएशन' या देशातील पहिल्या कामगार संघटनेच्या स्थापनेत साहाय्य केले.

३६. इ.स.१८८२ 'विल्यम हंटर शिक्षण आयोगा'समोर निवेदन दिले. यात प्राथमिक शिक्षण सक्तीचे व मोफत देण्याची मागणी केली.

३७. इ.स.१८८७ सत्यशोधक समाजातर्फे नवीन मंगलाष्टकांची व नवीन पूजाविधीची रचना करून पुरोहिताशिवाय विवाह घडवून आणण्यास सुरुवात केली.

३८. इ.स.१८८८ ड्यूक ऑफ कॅनॉट यांची भेट आणि सत्कार.

३९. ११ मे इ.स.१८८८ मुंबईतील कोळीवाडा येथे जनतेने रावबहादुर विठ्ठलराव वंडेकर यांच्या हस्ते सत्कार करून 'महात्मा' ही पदवी प्रदान केली.

४०. नोव्हेंबर २८ इ.स.१८९० पुणे येथे निधन.


♨ *पश्चात प्रभाव (लीगसी)*

                     महात्मा फुले यांच्या निधनानंतर सत्यशोधक चळवळ महाराष्ट्रात रुजवण्यासाठी दिनकरराव जवळकर व केशवराव जेधे यांनी खूप मेहनत घेतली. राजर्षी शाहू महाराजांनी त्यांना समाजप्रबोधनासाठी मदत केली. ब्राम्हणेतर चळवळीसाठी जेधे-जवळकर जोडीने अवघा महाराष्ट्र ढवळून काढला.


⚜ *तृतीय रत्‍न*

               तृतीय रत्‍न या नाटकाचा सारा इतिहास नाट्यपूर्ण आहे. जोतिबांनी २८ व्या वर्षी इ.स.१८५५ साली हे नाटक लिहिले. नाटक लिहिण्याचा हेतू जोतिबा लिहितात, ‘भट जोशी आपल्या मतलबी धर्माच्या थापा देऊन अज्ञानी शूद्रास कसकसे फसवून खातात व ख्रिस्ती उपदेशक आपल्या निःपक्षपाती धर्माच्या आधाराने अज्ञानी शूद्रास खरे ज्ञान सांगून त्यास कसकसे सत्यमार्गावर आणतात, या सर्व गोष्टीविषयी म्या एक लहानसे नाटक करून इ.स. १८५५ मध्ये दक्षिणा प्राइज कमिटीला अर्पण केले; परंतु तेथेही असल्या भिडस्त भट सभासदांच्या आग्रहामुळे युरोपियन सभासदांचे काही चालेना. तेव्हा त्या कमिटीने माझी चोपडी नापसंत केली. अखेर मी ते पुस्तक एकीकडेस टाकून काही वर्षे लोटल्यानंतर दुसरी लहानशी ब्राह्मणांच्या कसबाविषयी नवीन चोपडी तयार करून आपल्या स्वतःच्या खर्चाने छापून प्रसिद्ध केली. "


या नाटकाचे प्रत्यक्ष किती खेळ झाले, त्याला प्रतिसाद कसा मिळाला, याविषयी ठोस पुरावा उपलब्ध नाही. प्रथम इ.स. १९७९ मध्ये ‘पुरोगामी सत्यशोधक’मधून एप्रिल-मे-जूनच्या अंकात नेमक्या प्रस्तावनेसह हे नाटक प्रकाशित झाले. प्रा. सीताराम रायकर यांना बुलढाणा येथील पंढरीनाथ सीताराम पाटील यांच्या संग्रही या नाटकाच्या तीन हस्तलिखित प्रती मिळाल्या. तीनपैकी एका प्रतीवर त्रितीय नेत्र असेही शीर्षक प्रा. रायकरांना आढळले. इ.स. १८५५ मध्ये लिहिलेल्या नाटकाच्या हस्तलिखित प्रती इ.स. १९७९ (१२५ वर्षांचा कालखंड उलटल्यानंतर) मिळतात ही एक नाट्यपूर्ण घटनाच आहे. मराठी रंगभूमीचा प्रारंभ इ.स. १८४३ साली विष्णुदास भावे यांनी केला. पण मराठी नाट्यलेखन १८५६ साली प्रथम झाले आणि तेही गो.म. माडगावकर यांच्या ‘व्यवहारोपयोगी नाटक’ या पाचप्रवेशी नाटकापासून असे मानले जाई पण तृतीय रत्‍न (तृतीय नेत्र) या इ.स. १८५५ साली लिहिलेल्या नाटकामुळे पहिले लिखित मराठी नाटक असून, जोतिराव फुले हे पहिले मराठी नाटककार आहेत.

      आपली परिवर्तनवादी चळवळ सशक्त आणि परिणामकारक करण्यासाठी ‘नाटक’ या हत्याराचा वापर करण्याचा त्यांचा हेतू होता.


🎭 *नाटकाचे स्वरूप*

          या नाटकाला रूढ कथानक नाही. त्यात एक शोषकाचा, एक शोषिताचा असे दोन पक्ष आहेत. अशिक्षित कुणबी, त्याची बायको, भिक्षुक जोशी, त्याचा भाऊ, त्याची पत्‍नी, एक ख्रिस्ती धर्मोपदेशक, एक मुसलमान आणि विदूषक अशी एकूण आठ पात्रे आहेत. या सर्वच पात्रांना स्वत:चे असे चेहरे नाहीत. नाटकाची संकल्पना प्रातिनिधिक पातळीवर आहे. समाजातील एक विशिष्ट वर्ग जन्माने उच्च असल्याच्या एकमेव भांडवलावर समाजातील दुसर्‍या एका अंधश्रद्ध, अडाणी, गरीब वर्गाला कसा लुबाडत असतो, नागवित असतो याचेच प्रातिनिधिक चित्रण या नाटकात आहे.


नाटक म्हणून तृतीय रत्‍नचे लेखन सलग झालेले असून ती अनेक प्रवेशांची मालिका आहे. त्यात लेखकाने पात्रे, स्थळ, काळ, प्रसंग आणि संवाद यात मुक्त संचार पद्धतीचाच वापर केला आहे. त्या दृष्टीने या नाटकाला मुक्तनाट्य किंवा वगनाट्य (वग म्हणजे ओघ. कथानकामधे खंड पाडू न देता ओघाओघाने सांगणे.) म्हणता येईल. दोन फेर्‍या मारल्या की, राजवाडा, आणखी दोन चकरा मारल्या की, घनदाट जंगल ही जशी लोकनाट्यात भरपूर सोय असते तशीच रचना तृतीय रत्‍नची आहे. ठरावीक नाट्यगृह, रंगमंच, प्रकाशयोजना यांचीही गरज नाही. लोक जमताच कोठेही नाटक सादर केले जावे अशीच याची अत्यंत लवचीक रचना आहे. ‘पथनाट्य’ म्हणूनसुद्धा या नाटकाला विशेष महत्त्व आहे.


या नाटकातील ‘विदूषक’ हे पात्र अतिशय महत्त्वाचे आहे. विदूषक या संस्कृत कलोत्पन्न पात्रासह संस्कृत कुलोत्पन्न अशाच त्रितीय रत्‍न (किंवा त्रितीय नेत्र) या शीर्षकाखाली जोतिबांनी मराठी नाट्यरचना सुरू केलेली आहे. पण त्यांनी परंपरागत रचना नाकारलेली आहे. या विदूषकाचे सांकेतिक रूप, त्याचा खादाडपणा, आचरट बोलणे याला पूर्णपणे फाटा दिलेला आहे आणि अत्यंत वेगळाच विदूषक रंगभूमीवर साकारण्याचा प्रयत्‍न जोतिबांनी केलेला आहे आणि तो यशस्वीही झालेला आहे.


हा ‘विदूषक’ एकाच नाटकात अनेक भूमिका वठविणारा आहे. काही प्रसंगी तो निवेदक आहे. काही प्रसंगी तो भाष्यकार आहे. काही ठिकाणी तर त्याची भाषा जहाल आणि तिखट झालेली जाणवते. उपहास, नेमके वर्मावर बोट ठेवणे, बिंग फोडणे आणि रहस्य उलगडून दाखविणे आणि ज्ञानाचा मार्ग धरा हा उपदेश करणे ही कामेही तो अत्यंत चोखपणे करीत असतो. एकाच वेळी नाटकातील पात्रांच्या कृतीमधून प्रेक्षकांशी संवाद साधण्याचे अजब कसब व्यक्त होते.

                  महात्मा फुले लिखित ऐतिहासिक 'तृतीय रत्न' हे नाटक 2015 साली पुण्यामधून दिग्दर्शक सिद्धार्थ सिताराम मोरे यांनी बसवायला सुरुवात केली. यातील विदूषकाची भूमिका ते स्वतः करत होते. तर जोगबाईची भूमिका अभिनेत्री सुप्रिया सिद्धार्थ या करत होत्या. या नाटकाचे सुरुवातीचे निर्माते विजय कांबळे होते. काही कारणास्तव कांबळे साहेब यांनी माघार घेतली त्यानंतर सिद्धार्थ मोरे यांनी निर्मितीची जबाबदारी स्वतःच्या खांद्यावर घेऊन या नाटकाचे प्रयोग सादर केले.


📚 *महात्मा फुले यांच्यावर लिहिलेली पुस्तके*

 असूड (मराठी नाटक) लेखक : डॉ. सोमनाथ मुटकुळे

क्रांतिबा फुले (नाटक) अनुवादक : फ.मुं. शिंदे. (मूळ आचार्य रतनलाल सोनग्रा साहित्य अकादमीचे प्रकाशन)

पहिली भारतीय शिक्षिका- सावित्रीबाई फुले (चरित्र) लेखक : बा.ग. पवार

महात्मा ज्योतिबा फुले (चरित्र) लेखक : ग.द. माळी

महात्मा जोतिबा फुले (चरित्र) लेखिका : गिरिजा कीर

महात्मा जोतिबा फुले (चरित्र) लेखक : गोविंद तळवलकर

महात्मा जोतिबा फुले आणि सावित्रीबाई फुले (चरित्र) लेखिका : अनुराधा गद्रे

महात्मा ज्योतिबा फुले यांचा सार्वजनिक सत्यधर्म (संपादित) प्रकाशक : श्री गजानन बुक डेपो

महात्मा ज्योतिराव फुले आणि त्यांचे कार्य. लेखक : विठ्ठलराव भागवत

महात्मा जोतीबा फुले (चरित्र) लेखक : सुखदेव होळीकर

महात्मा जोतीबा फुले (संपादित) प्रकाशक : सूर्या अध्यापन साहित्य

महात्मा जोतीबा फुले यांचे १०१ मौलिक विचार. संपादन : नागनाथ कोतापल्ले

महात्मा जोतीराव फुले (चरित्र) लेखक : धनंजय कीर

महात्मा जोतीराव फुले (चरित्र) लेखक : नागेश सुरवसे

महात्मा जोतीराव फुले (चरित्र) लेखक : निर्मळ गुरुजी

महात्मा ज्योतीराव फुले (चरित्र) लेखक : पंढरीनाथ सिताराम पाटील

महात्मा जोतीराव फुले (चरित्र) लेखक : भास्कर लक्ष्मण भोळे

महात्मा जोतीराव फुले (चरित्र) लेखक : रमेश मुधोळकर

महात्मा जोतीराव फुले (चरित्र) लेखक : वसंत शांताराम देसाई

महात्मा जोतीराव फुले - जीवन आणि कार्य. लेखक : दिलीप मढीकर

महात्मा जोतीराव फुले यांचे शेतीविषयक विचार. संपादन : नूतन विभूते ; मनोविकास प्रकाशन

महात्मा जोतीराव फुले - वारसा आणि वसा. लेखक : भास्कर लक्ष्मण भोळे

महात्मा जोतीराव फुले सार्वजनिक सत्यधर्म (विश्वनाथ शिंदे)

महात्मा फुले आणि शेतकरी चळवळ (संपादित) प्रकाशक : सुगावा प्रकाशन

महात्मा फुले आणि सत्यशोधक चळवळ. लेखक : मा.प. बागडे

महात्मा फुलेंची जीवनक्रांती. लेखिका : लीला घोडके

महात्मा फुले जीवन आणि कार्य (संपादित). प्रकाशक : भारतीय विचार साधना प्रकाशन पुणे

महात्मा फुले टीका आणि टीकाकार. लेखक : नीलकंठ बोराडे

महात्मा फुले दुर्मिळ वाङ्‌मय आणि समकालीन चरित्रे. लेखक : मा.गो. माळी

महात्मा फुले यांचा शोध व बोध. लेखक : रा.ना. चव्हाण

महात्मा फुले यांची कविता-एक विचार मंथन (शशिशेखर शिंदे)

महात्मा फुले यांचे निवडक विचार (संपादित) प्रकाशक : यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान

महात्मा फुले यांचे शैक्षणिक कार्य. लेखक : तानाजी ठोेंबरे

महात्मा फुले यांच्या अप्रकाशित आठवणी (संपादित) प्रकाशक : श्री गजानन बुक डेपो

महात्मा फुले यांच्या कार्यात ब्राह्मणांचा सहभाग. लेखक : विद्याकर वासुदेव भिडे

महात्मा फुले राजर्षी शाहू आणि वैचारिक प्रवास. लेखक : हरिभाऊ पगारे

महात्मा फुले व सांस्कृतिक संघर्ष. लेखक : भारत पाटणकर

महात्मा फुले व्यक्तित्व आणि विचार. लेखक : गं.बा. सरदार

महात्मा फुले समग्र वाङ्मय - संपादक धनंजय कीर. प्रकाशक : महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृती आणि मंडळ

महात्मा फुले सामाजिक क्रांतीचे अग्रदूत. लेखक : दत्ता जी. कुलकर्णी

युगपुरुष महात्मा जोतीराव फुले. लेखक : बा.ग. पवार

युगार्त (जोतिबा व सावित्रीबाई फुले यांच्यावरील चरित्रात्मक कादंबरी, लेखक - बाळ लक्ष्मण भारस्कर)


🎭🎞 *नाटक, चित्रपट*

महात्मा फुले (मराठी चित्रपट) निर्माते-दिग्दर्शक आचार्य अत्रे.

महात्मा जोतीबा फुले (लोकनाट्य) लेखक : शंकरराव

महात्मा जोतीराव फुले (नजरियात और उनका अदब (उर्दू )लेखिका : डा नसरीन रमजान सैय्यद)

मी जोतीबा फुले बोलतोय (एकपात्री नाटक) : लेखक-सादरकर्ते कुमार आहेर. कुमार आहेरांना या कार्यासाठी महाराष्ट्र सरकारने ‘बाबासाहेब आंबेडकर समाज उत्थान पुरस्‍कार’ दिला आहे.

सत्यशोधक (मराठी नाटक) लेखक : गो.पु. देशपांडे; दिग्दर्शक अतुल पेठे


💎 *समारोप*

 विद्याध्यायनासाठी ज्यांचा सतत असे प्रयास,

त्यांचे अखंड जीवन म्हणजे, जणू एक खडतर प्रवास.

परि स्त्री शिक्षण; हा एकची असे ध्यास, हा एकची असे ध्यास,

या उक्तीप्रमाणे महात्मा जोतीराव फुले यांनी आपले व्यक्तिमत्व स्वयंप्रेरणेने व स्वतःच्या प्रयत्‍नांनी घडविले होते. त्यांचा पिंड हा कृतीशील क्रांतिकारकाचा होता. महाराष्ट्राच्या समाजसेवेसाठी ध्येयाने भरून जाऊन आपले सर्व जीवन समर्पित करणारे ते थोर पुरुष होते. आधुनिक भारतातले पहिले समाजक्रांतिकारक म्हणून त्यांना ओळखले जाते. कारण ते सामान्यांतील असले तरी विचाराने व कर्तृत्वाने असामान्य होते. सामाजिक विषमतेविरुद्ध ज्योतीबांनी बंड पुकारले. 'शिक्षण व समता' या दोन शब्दांतच त्यांच्या या कार्याचे यथोचित वर्णन करता येईल. महाराष्ट्रातील सर्वसामान्यांसाठी रात्रंदिवस झटणारे ते सेवक होते.


🏵 *सन्मान*

 महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले यांच्या जीवन-कार्यावर आधारित, नाटक "मी जोतीराव फुले बोलतोय ..!" ...याची सुरुवात २००२पासून पुण्यातून झाली. या नाटकाचे लेखक-दिग्दर्शक-संगीतकार-गीतकार आणि निर्माते सिद्धार्थ सीताराम मोरे हे आहेत तसेच महात्मा जोतिराव फुले यांची प्रमुख भूमिका सुद्धा सिद्धार्थ मोरे यांनीच साकारली आहे. तर सावित्रीबाई फुले यांच्या भूमिकेत अभिनेत्री सुप्रिया सिद्धार्थ या आहेत. हे नाटक मराठी आणि हिंदी अशा दोन भाषांमध्ये सादर केले जाते. हे नाटक संपूर्ण देशभर देखील सादर झाले आहे. सन २०१० साली या नाटकाचा पुण्यामध्ये बालगंधर्व रंगमंदिर येथे ७५० वा प्रयोग सादर झाला.

पिंपरी-चिंचवड महापालिका ही 'फुले आणि आंबेडकर' यांचा संयुक्त जयंती महोत्सव साजरा करते.

                     जोतीबा फुले यांच्या आयुष्यावर इ.स. १९५५ साली आचार्य अत्रे यांनी 'महात्मा फुले’ नावाचा चित्रपट काढला होता. त्याला राष्ट्रीय चित्रपट पुरस्कार मिळाला होता.

                 जोतिबांच्या जीवनावर 'असूड’ नावाचे एक नाटक डॉ. सोमनाथ मुटकुळे यांनी लिहिले आहे. या नाटकाचे रंगभूमीसाठी दिग्दर्शन बी. पाटील यांनी केले आहे.

‘सत्यशोधक' नावाचा एक मराठी चित्रपट, दिग्दर्शक नीलेश जालमकर काढणार होते. त्यात संदीप कुलकर्णी महात्मा फुले यांची आणि सावित्रीबाई फुलेंची भूमिका अभिनेत्री राजश्री देशपांडे साकारणार होत्या. समता फिल्म्सचा हा चित्रपट २०१५ सालापासून रखडला.

महाराष्ट्रातले भाजप सरकार आणि केंद्र सरकार फुलेंच्या जीवनावर एक चित्रपट काढणार असल्याचे जाहीर झाले हॊते, पण फॆब्रुवारी २०१७ नंतर त्या चित्रपटासाठी काही झाल्याचे दिसलॆ नाही.

जोतीराव फुल्यांच्या गावी म्हणजे खानवडी येथे, दरवर्षी महात्मा फुले प्रबोधन मराठी साहित्य संमेलन भरते. याशिवाय फुले-आंबेडकर साहित्य संमेलन, फुले-शाहू-आंबेडकर राष्ट्रीय साहित्य संमेलन, सावित्रीबाई फुले साहित्य संमेलन आदी अनेक दलित साहित्य संमेलने फुले यांच्या नावाने भरतात.

महात्मा फुले आणि सावित्रीबाई फुले यांच्या नावाच्या अनेक संस्था महाराष्ट्रात आहेत.

   

       

महिला व बालविकास विभागात तब्बल २५८ पदांसाठी जाहिरात ..

 Mpsc मार्फत.महिला व बालविकास विभागात तब्बल २५८ पदांसाठी जाहिरात देण्यात आलेली आहे.

महिला व बालविकास आयुक्तालयांतर्गत अधीक्षक / निरीक्षक प्रमाणित शाळा व तत्सम संवर्गाकरीता मर्यादित विभागीय स्पर्धा परीक्षा २०२५ची जाहिरात एमपीएससीच्या संकेतस्थळावर प्रसिध्द करण्यात आली आहे. एकूण पदे २५८ असून अर्ज करण्याचा अंतिम दिनांक १४ डिसेंबर आहे.

महिला व बाल विकास आयुक्तालयांतर्गत अधिक्षक / निरीक्षक, प्रमाणित शाळा व संस्था /रचना व कार्यपध्दती अधिकारी / अधिव्याख्याता / जिल्हा महिला व बाल विकास अधिकारी /सांख्यिकी अधिकारी गट-ब (राजपत्रित) आणि एकात्मिक बाल विकास सेवा योजना आयुक्तालयांतर्गत बाल विकास प्रकल्प अधिकारी (ग्रामीण), गट-ब या पदांवर निवडीद्वारे नियुक्तीकरीता मर्यादित विभागीय स्पर्धा परीक्षा – २०२५ करिता जाहिरात प्रसिद्ध करण्यात आलेली आहे.

फक्त महिला व बाल विकास विभागातील आणि ग्राम विकास विभागातील कर्मचा-यांना खालील संवर्गातील पदावर निवडीद्वारे नियुक्ती देण्यासाठी महाराष्ट्र लोकसेवा आयोगामार्फत महिला व बाल विकास आयुक्तालयांतर्गत अधिक्षक / निरीक्षक, प्रमाणित शाळा व संस्था / रचना व कार्यपध्दती अधिकारी / अधिव्याख्याता / जिल्हा महिला व बाल विकास अधिकारी / सांख्यिकी अधिकारी गट-ब (राजपत्रित) आणि एकात्मिक बाल विकास सेवा योजना आयुक्तालयांतर्गत बाल विकास प्रकल्प अधिकारी (ग्रामीण), गट-ब या पदांवर निवडीद्वारे नियुक्तीकरीता मर्यादित विभागीय स्पर्धा परीक्षा २०२५ आयोजित करण्यात येईल. प्रस्तुत परीक्षेचा दिनांक, परीक्षा केंद्र, परीक्षेचे स्वरुप (Online/Offline) स्वतंत्रपणे प्रसिद्ध करण्यात येईल.

२. संवर्गाचे नाव :- महिला व बाल विकास आयुक्तालयांतर्गत अधिक्षक / निरीक्षक, प्रमाणित शाळा व संस्था / रचना व कार्यपध्दती अधिकारी / अधिव्याख्याता / जिल्हा महिला व बाल विकास अधिकारी / सांख्यिकी अधिकारी गट-ब (राजपत्रित) आणि एकात्मिक बाल विकास सेवा योजना आयुक्तालयांतर्गत बाल विकास प्रकल्प अधिकारी (ग्रामीण), गट-ब

३. अर्ज सादर करण्याची प्रक्रिया/कालावधी – विषयांकित संवर्गाच्या जाहिरातीस अनुसरून ऑनलाईल पद्धतीने अर्ज सादर करण्याचा कालावधी खालीलप्रमाणे राहील :-

दिनांक २४ नोव्हेंबर, २०२५ पासून अर्ज भरण्यास सुरुवात होईल. तर १४ डिसेंबर, २०२५ पर्यंत अर्ज भरण्याची शेवटची तारीख आहे. तर भारतीय स्टेट बँकेमध्ये चलनाद्वारे परीक्षा शुल्क भरण्यासाठी १४ डिसेंबर, २०२५ पर्यंत मुदत आहे.

भारतीय संविधान दिन..



       *26 नोव्हेंबर - संविधान दिन*


            घटनाकार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारताची राज्यघटना संविधान सभेचे अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद यांना सूपुर्द करतांना, २६ नोव्हेंबर १९४९ (फोटो पहा)


भारताचे संविधान (भारताची राज्यघटना) हा भारताचा सर्वोच्च कायदा व पायाभूत कायदा (legal basis) आहे. भारतीय संविधानावर विविध पाश्चात्त्य संविधानांचा प्रभाव आहे. 26 नोव्हेंबर 1949 रोजी राज्यघटनेचा स्वीकार केला गेला व जानेवारी २६ इ.स. १९५० पासून भारताची राज्यघटना अंमलात आली. राज्यघटना इंग्रजी भाषेत असून हिची हिंदी भाषेतील प्रतही कायदेशीरदृष्ट्या ग्राह्य आहे. डॉ. बाबासाहेब अांबेडकर हे भारताच्या संविधानाचे शिल्पकार आहेत.


📜 *इतिहास*

        भारतीय संविधानाच्या मसूदा समितीचे अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समितीच्या इतर सदस्यांसमवेत. (बसलेल्या पैंकी डावीकडून) एन. माधवराव, सय्यद सदुल्ला, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (अध्यक्ष), अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, सर बेनेगल नरसिंह राव. (उभे असलेल्या पैंकी डावीकडून) एस.एन. मुखर्जी, जुगल किशोर खन्ना व केवल कृष्णन् (२९ जाने, इ.स. १९४७)

 

      १९५० साली अमलात आलेले भारतीय संविधान मुख्यत्वे १९३५च्या भारत सरकार कायद्यावर (Government of India Act of 1935) वर आधारित आहे. १९३५ सालच्या या कायद्यान्वये भारताच्या अंतर्गत स्वशासनाचा पाया घातला गेला होता. ब्रिटिश पंतप्रधान क्लेमंट ॲटली यांच्या शिष्टमंडळाच्या स्वतंत्र भारताच्या संविधानाची निर्मिती करण्यासाठी एका मसुदा समितीच्या स्थापनेविषयीच्या कल्पनेस भारतीय स्वातंत्र्य लढ्याच्या नेत्यांनी सहमती दर्शविली होती. १९४६ च्या उन्हा़ळ्यात या समितीची स्थापना झाली व तिची पहिली बैठक ९ डिसेंबर  १९४६ रोजी सच्चिदानंद सिन्हा यांच्या अध्यक्षतेखाली नवी दिल्ली येथील संविधान सभागृह मध्ये पार पडली कि, जे आज सेंट्रल हॉल या नावाने परिचित आहे.पहिल्या बैठकीला ९ महिलांसह एकूण २०७ सदस्य उपस्थित होते . १५ ऑगस्ट  १९४७ रोजी भारतास स्वातंत्र्य मिळाल्यावर अल्पकाळ या समितीने भारताचे प्रतिनिधी रूपात काम केले होते.

              २९ ऑगस्ट १९४७ रोजी डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर यांच्या नेतृत्वाखाली मसूदा समिती स्थापन झाली. अनेक बैठकांनंतर या समितीने सादर केलेला अंतिम मसुदा २६ नोव्हेंबर  १९४९ रोजी स्वीकारला गेला. यामुळे २६ नोव्हेंबर हा दिवस "भारतीय संविधान दिन" म्हणून साजरा केला जातो. नागरिकत्व, निवडणुका व अंतरिम संसदेविषयीचे आणि इतर काही तात्पुरत्या बाबी तत्काळ लागू झाल्या. संविधान संपूर्ण रूपाने २६ जानेवारी १९५० रोजी लागू झाले. त्यामुळे २६ जानेवारी हा दिवस "भारतीय प्रजासत्ताक दिन" म्हणून साजरा केला जातो.


📖 *स्वरूप*

      भारताची राज्यघटना उद्देशिका (Preamble), मुख्य भाग व १२ पुरवण्या (परिशिष्टे) अशा स्वरूपात विभागली आहे. मुख्य संविधानाचे २५ भाग असून त्यांची अनेक प्रकरणांमध्ये विभागणी केलेली आहे. सुरूवातीच्या ३९५ कलमांपैकीची काही कलमे आता कालबाह्य झाली आहेत. सध्या राज्यघटनेत ३९५ (डिसेंम्बर २०१८) कलमे असून भारतीय संविधान जगातल्या सर्वांत मोठ्या संविधानांमध्ये मोडते. भारताची घटना हि अतिशय लवचिक असून जगातील इत्तर घटनेपेक्षा जास्त प्रकारचे कायदे करता येतात. आपल्या घटनेने प्रत्येकाला एकाच नागरिकत्व दिले आहे व प्रत्येकाला एका मताचा अधिकार दिला आहे. आपली घटना हि जगातील सगळ्यात मोठी घटना आहे.


📒 *तोंडओळख व महत्त्वाची अंगे*

           भारतीय संविधानात अनेक पाश्चात्त्य देशांच्या उदारमतवादी राज्यघटनांचा व ब्रिटिश वसाहतवादी संविधानाच्या पायाभूत तत्त्वांशी मेळ घालण्यात आला आहे. ब्रिटिशकालीन् भारताच्या व्हॉईसरायकडे असलेले प्रमुख पद नव्या व्यवस्थेत राष्ट्रपतीकडे सोपवण्यात आले व व्हाईसरॉयचे प्रशासकीय अधिकार पंतप्रधानांकडे देण्यात आले आहेत. राज्यघटनेच्या ७४ व्या कलमानुसार राष्ट्रपतींचे अधिकार मर्यादित असून ते केवळ मंत्रिमंडळास सल्ला देऊ शकतात. राष्ट्रपती हे तीनही सैन्यदलांचे प्रमुख असतात. ब्रिटिश व्यवस्थे प्रमाणे भारतीय संसदही द्विगृही (Bicameral) आहे.


📖 *उद्देशिका*

                 भारतीय संविधानाच्या उद्देशिकेप्रमाणे भारत हे सार्वभौम (Sovereign) , समाजवादी (Socialist), धर्मनिरपेक्ष (Secular), लोकशाही (Democratic) प्रजासत्ताक (Republic) आहे. उद्देशिका फ्रेंच राज्यक्रांतीच्या आदर्शांना अनुसरून नागरिकांस -


सामाजिक, आर्थिक आणि राजकीय न्याय

आचार,विचार, धर्म, श्रद्धा यांचे स्वातंत्र्य

आणि राजकीय समानता व समान संधी देण्याचे अभिवचन देते.

मूळ उद्देशिकेत समाजवादी धर्मनिरपेक्ष व एकात्मता हे शब्द नव्हते. राज्यघटनेच्या ४२व्या दुरूस्तीद्वारे ते उद्देशिकेत घालण्यात आले.


🗳 *मूलभूत अधिकार*

                 भारतीय राज्यघटनेच्या उदारमतवादी (liberal character) रूपाची प्रचिती विभाग ३ मधील मूलभूत अधिकारांच्या तरतुदीवरून येते. या अधिकारांमध्ये सामान्य मानवी अधिकारांचा समावेश आहे जसे - कायद्यासमोर नागरिकांची समानता किंवा धर्म, वंश, जात, लिंग वा प्रांत आदी मुद्द्यांधारे न केला जाणारा भेदभाव (कलमे १२ -१८) दलितांवरच्या अत्याचारा विरुद्धचे कलम १७ विशेष महत्त्वाचे आहे. अस्पृश्यता पाळणे हा या कलमाने दंडनीय गुन्हा आहे. घटनेत पाच मूलभूत प्रकारचे अधिकार ओळखण्यात आले आहेत.


स्वातंत्र्य (कलम १९-२२): भाषण स्वातंत्र्य आणि अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य सभा वा संघटना स्थापण्याचे स्वातंत्र्य, पेशा निवडण्याचे स्वातंत्र्य (कलम १९)

कायदा (कलम २०), जीविताचा अधिकार (कलम २१), काही बाबींमध्ये अटक वा कैदेचे स्वातंत्र्य (कलम २२)

शोषणाविरूद्ध संरक्षण (कलम २३ व २४): बालमजूरी व मानवी तस्करी (human trafficking) पासून सं‍रक्षण

धर्मस्वातंत्र्य (कलम २५-२८) : पूजा व आचरणाचे स्वातंत्र्य

अल्पसंख्याकांचे अधिकार (कलम २९ व ३०): अल्पसंख्याकांना संरक्षण व स्वतःच्या शिक्षणसंस्था स्थापण्याचे स्वातंत्र्य

घटनात्मक तक्रारींचा अधिकार (कलम ३२-३५): मूलभूत अधिकारांचे हनन झाले आहे असे वाटल्यास कोणत्याही व्यक्तीस कलम ३२ अन्वये सर्वोच्च न्यायालयात तक्रार दाखल करण्याचा हक्क आहे.

मालमत्ता बाळगण्याचा अधिकार देणारे कलम ३१ हे १९७८ साली वगळण्यात आले होते. ही वगळण वादग्रस्त ठरली होती.


📘 *सरकारसाठीची मार्गदर्शक तत्वे*

     राज्यघटनेच्या चौथ्या विभागात राज्य व संघ स्तरावरील सरकारे तसेच संसदे/विधानसभा यांच्यासाठी मार्गदर्शक तत्त्वे घालून देण्यात आली आहेत. यात सामाजिक अधिकार - जसे कामाचा अधिकार, शिक्षण व कल्याणाचा अधिकार, जीवनाचा सार्वत्रिक स्तर उंचावण्यासाठीची सरकारची सामाजिक दायित्वे, मनुष्यांना कामे करणे सुलभ होईल अशी कार्यालये (human working conditions and appropriate environment) आदी. कलम ४३ अन्वये समाविष्ट आहेत. कलम ४५ अन्वये १४ वर्षांपर्यंतच्या मुलांना मोफत शिक्षण हे शासनाचे दायित्व आहे. कलम ४६ अन्वये समाजातील मागास घटकांच्या (विशेषतः आदिवासी व दलित घटकांना) उन्नतीस शासन बांधील आहे. वरील सामाजिक दायित्वांशिवाय चौथ्या विभागात न्यायालयीन (Judiciary) व प्रशासकीय (Executive) अधिकारांचा कलम ५० मध्ये व पंचायत स्थापण्याचा कलम ४०) मध्ये उल्लेख आहे.


निसर्गरक्षण (कलम ४८-अ), स्मारकांचे जतन (कलम ४९), आंतरराष्ट्रीय शांतता व परस्पर मैत्री संबंधांविषयीचे कलम (कलम ५१) आदी कलमे सरकारसाठीची इतर मार्गदर्शक तत्त्वे आहेत. इतरत्र अतिशय सुस्पष्ट व तपशीलवार असणारे भारतीय संविधानाचे रूप या कलमांमध्ये अतिशय ढोबळ (Vague) असे आहे. वरील पैकी कोणतीही कलमे सरकारसाठी सक्तीची नाहीत. किंबहुना तात्विक मूल्ये (Moral values) असेच त्याचे स्वरूप आहे.


📙 *सत्ता*

सत्तेचे भारतात तीन प्रकारे विकेंद्रीकरण झाले आहे -

कार्यकारी (Executive)

कायदेकारी(Legislative)

न्यायालयीन (Judicial)

प्रशासकीय सत्ता पंतप्रधान/मुख्यमंत्री व मंत्रीमंडळाकडे असते. प्रशासकीय सत्ता संसदीय अधिवेशन चालू नसताना कायदे करू शकते; परंतु त्यास संसदेची मान्यता मिळणे बंधनकारक असते. भारतात प्रशासकीय व न्यायालयीन अधिकारांच्या मर्यादा सुस्पष्टपणे आखून देण्यात आल्या आहेत. न्यायालयीन सत्तेचे सर्वोच्च केंद्र सर्वोच्च न्यायालय असते.


भारतातील संसद ही द्विगृही (Bicameral) आहे. कलम १६८ अन्वये राज्यांची विधिमंडळे एकगृही(Unicameral) वा द्विगृही(Bicameral) असू शकतात. द्विगृही व्यवस्थेत विधानसभा हे खालील सभागृह (Lower House) तर विधानपरिषद हे वरील सभागृह(Upper House) असते.


📔 *संघराज्य प्रणाली*

                        भारत हे संघराज्य आहे. भारतीय संविधानाने केंद्र सरकारला अधिकारांमध्ये झुकते माप दिले आहे. विभाग ६ अन्वये राज्यांच्या सत्ता, हक्क, कर्तव्ये निश्चित करण्यात आली आहेत. राज्य सरकारचे स्वरूपही केंद्राप्रमाणेच असते. राज्यात पंतप्रधानाप्रमाणे मुख्यमंत्री हा सरकारचा कार्यकारी प्रमुख तर राज्यपाल हा राष्ट्रपतीप्रमाणे घटनात्मक प्रमुख असतो. गरज पडल्यास राज्याचे शासन केंद्राद्वारे बरखास्त केले जाऊ शकते. भारताची फाळणी, हिंदू-मुस्लिम दंगे अशा कारणांमुळे केंद्रीय सरकार तुलनेने सशक्त ठेवण्याची गरज घटनाकारांस भासली. राज्ये संघराज्यापासून फुटू नयेत यासाठी केंद्रीय सरकारकडे जादा अधिकार देण्यात आले आहेत. गाव व तालुकास्तरांवरील स्थानिक स्वराज्य संस्थांना पूर्णतः स्वायत्तता देण्यास याच कारणास्तव उशीर झाला.


📗 *अधिकृत भाषा*

         संघराज्याची अधिकृत भाषा कोणती असावी हा घटनासमितीतील सर्वाधिक वादाचा मुद्दा होता, असे डॉ.आंबेंडकरांनी आपल्या आठवणीत नमूद केले आहे. राज्यघटनेच्या कलम ३४३ अन्वये देवनागरी लिपीत लिहिलेली हिंदी भाषा ही संघराज्याची अधिकृत भाषा आहे. यासोबत इंग्रजी भाषेचा उपयोग सर्व अधिकृत कामांसाठी करण्यात येईल. हिंदी भाषेस घटनेने राष्ट्रभाषा नव्हे तर संघराज्याची अधिकृत भाषा असा दर्जा दिलेला आहे. या सोबत इतर २२ भाषा भारताच्या मान्यताप्राप्त भाषा आहेत. इंग्रजी भाषेच्या वापराविषयी दर १५ वर्षात पुनरावलोकन करावे अशी तरतूद घटनेत आहे.

                      कलम ३४५ अन्वये राज्यांना हिंदी वा एकाधिक प्रादेशिक भाषा वापरण्याचा पर्याय आहे. कलम ३४६ अन्वये केंद्र सरकार व राज्य सरकार यांचे परस्परांशी व राज्यांचे परस्परांशी दळणवळण हिंदी वा इंग्रजीत असावे अशी तरतूद आहे. सर्वोच्च न्यायालयाची भाषा इंग्रजी आहे. राष्ट्रपतीच्या अनुमतीने उच्च न्यायालयात हिंदी वा इतर प्रादेशिक भाषांच्या वापरास मुभा आहे. जर हिंदी व इंग्रजी भाषेतील कोणत्याही कायदेशीर दस्तात मतभेद/फरक दिसल्यास इंग्रजी भाषिक मजकूर ग्राह्य मानला जाईल असे कलम ३४८ सांगते


📙 *आणीबाणीविषयक तरतुदी*

भारताच्या राज्यघटनेत आणीबाणी विषयकच्या अनेक तरतुदींचा उल्लेख आहे. आणीबाणीचे तीन प्रकार सांगितले आहेत. यात -


राष्ट्रीय आणीबाणी - जेव्हा राष्ट्र वा त्याचा मोठा हिस्सा आपदकालीन स्थितीत असतो तेव्हा

प्रादेशिक आणीबाणी - जेव्हा एखाद्या राज्यातील स्थिती नियंत्रणाबाहेर जाते तेव्हा

आर्थिक आणीबाणी - जेव्हा भारताचे आर्थिक स्थैर्य वा पत धोक्यात असते तेव्हा

अशा तीन आणीबाणींचा समावेश आहे

                राज्यघटनेच्या ३५२व्या कलमानुसार भारताची अंतर्गत वा बाह्य सुरक्षितता धोक्यात आली असता राष्ट्रपती राष्ट्रीय आणीबाणी घोषित करू शकता. ३५३ व्या कलमानुसार आणीबाणीच्या परिस्थितीत सारे अधिकार संसदेकडे एकटवितात. राज्यघटनेच्या ३५९व्या कलमानुसार राष्ट्रपती विभाग ३द्वारे नागरिकांस दिलेल्या सर्व मूलभूत अधिकारांचा प्रत्याहार (काढून घेणे) करू शकतो. ३५८व्या कलमानुसार कलम १९मधील नागरिकांचे अधिकार आणीबाणीच्या काळात आपोआप समाप्त होतात. म्हणजेच व्यवस्थेचे इतर काळी उदारमतवादी असलेले रूप या काळात अनुदार बनते. राज्यघटनेच्या ३५६व्या कलमानुसार राज्याची परिस्थिती नियंत्रणाबाहेर गेल्यास राज्याचा कारभार राष्ट्रपतींकडे देण्यात येतो. राज्याच्या विधिमंडळाचे काम या काळात संसद करते. या स्थितीस राष्ट्रपती राजवट असे म्हणतात.


📗 *कलमांचा गोषवारा*

संविधानाच्या मूळ आवृत्तींचा गोषवारा -

भाग १ -

कलम 1 संघाचे नाव आणि भूप्रदेश

कलम 2 - प्रदेश किंवा नविन राज्यांची निर्मीती

कलम 2(अ)-सिक्कीम हे संघाचे सहयोगी राज्य (रद्द केले)


कलम 3- नवीन राज्याची स्थापना, सिमा किंवा नावे बदलणे

कलम 4-कलम 2 आणि कलम 3 अंतर्गत केलेले बदल, कलम368 अनुसार घटनादुरुस्ती समजली जाणार नाही

भाग 2 - कलमे 5-11नागरिकत्व

भाग ३ - कलमे १२-३५ मूलभूत हक्क

कलमे १४-१८ समानतेचा हक्क,

कलमे १९-२२ स्वातंत्र्याचा हक्क,

कलमे २३-२४ शोषणाविरुद्धचा हक्क,

कलमे २५-२८ धार्मिक स्वातंत्र्याचा हक्क,

कलमे २९-३0 सांस्कृतिक आणि शैक्षणिक हक्क,

कलमे ३२-३५ सांविधानिक परिहाराचा हक्क.

भाग ४ - राज्य धोरणाची मार्गदर्शक तत्वे कलमे ३६ - ५१

कलम 40 -ग्रामपंचायतीचे संघटन

कलम 41 - काम करण्याचा, शिक्षणाचा, गरजूंना सरकारी मदत मिळण्याचा अधिकार

भाग ४(अ) कलम ५१ अ - प्रत्येक भारतीय नागरिकाचि मूलभूत कर्तव्ये.

*भाग ५ -*

प्रकरण १ - कलमे ५२-७८

कलमे ५२-६३ राष्ट्रपती आणि उपराष्ट्रपती यांच्याबाबत,

कलमे ७४-७५ मंत्रीमंडळविषयक

कलम ७६ भारताचे मुख्य ऍटर्नी,

कलमे ७७-७८ सरकारच्या व्यवहाराबाबत

प्रकरण २ - कलमे ७९-१२२ संसदेबाबत.

कलमे ७९-८८ संसदेच्या संविधानाबाबत,

कलमे ८९-९८ संसदेच्या अधिकारांबाबत,

कलमे ९९-१००

कलमे १०१-१०४ सदस्यत्व रद्द करण्याबाबत

कलमे १०५-१०६ संसद व खासदारांचे अधिकार आणि विशेषाधिकार यांच्या बाबत,

कलमे १०७-१११ (law making process)

कलमे ११२-११७ आर्थिक बाबींबाबत,

कलमे ११८-१२२

प्रकरण ३ - कलम १२३

कलम १२३ संसदेच्या विरामकाळात राष्ट्रपतींच्या आदेशाबाबत

प्रकरण ४ - कलमे १२४-१४७

कलमे १२४-१४७ सर्वोच्च न्यायालयची रचना आणि संविधान याबाबत

प्रकरण ५ - कलमे १४८-१५१ भारताचे कंट्रोलर आणि ऑडिटर जनरल यांचेबाबत.

कलमे १४८ - १५१ कंट्रोलर आणि ऑडिटर जनरल यांचे अधिकार व कर्तव्ये यांबाबत

भाग ६ - राज्यांच्याच्या बाबतची कलमे.

प्रकरण १ - कलम १५२ भारताचे राज्यांची सामान्य व्याख्या

कलम १५२ - भारताचे राज्यांची सामान्य व्याख्या - जम्मू आणि काश्मीर वगळून

प्रकरण २ - कलमे १५३-१६७ कार्यांबाबत

कलमे १५३-१६२ राज्यपालाच्या बाबत,

कलमे १६३-१६४ मंत्रिमंडळावर,

कलम १६५ राज्याच्या ॲडव्होकेट-जनरल यांच्याबाबत.

कलमे १६६-१६७ सरकारच्या व्यवहारिक गरजांबाबत.

प्रकरण ३ - कलमे १६८ - २१२ राज्यांच्या शासनाशी निगडित.

कलमे १६८ - १७७ सामान्य माहिती

कलमे १७८ - १८७ राज्यांच्या शासनाचे अधिकार

कलमे १८८ - १८९ कार्यकालाविषयी

कलमे १९० - १९३ सदस्यत्व रद्द करण्याबाबत

कलमे १९४ - १९५ विधिमंडळ सदस्यांचे अधिकार, सवलती, कायदेशीर संरक्षणे

कलमे १९६ - २०१ कार्यकाविषयी

कलमे २०२ - २०७ अर्थिक विषयांसंबधी

कलमे २०८ - २१२ इतर सामान्य विषयांसंबधी

प्रकरण ४ - कलम २१३ राज्यपालांच्या अधिकारांबाबत

कलम २१३ - राष्ट्रपती व अधिवेशन काळातील विधेयके.

प्रकरण ५ - कलमे २१४ - २३१ राज्यांच्या उच्च न्यायालयांबाबत.

कलमे २१४ - २३१ राज्यांच्या उच्च न्यायालयांबाबत.

प्रकरण ६ - कलमे २३३ - २३७ अधीन न्यायालयांबाबत.

कलमे २३३ - २३७ अधीन न्यायालयांच्या बाबत


📓 *भाग ७ - राज्यांच्या बाबतीतील कलमे.*

कलम २३८ -

भाग ८ - केंद्रशासित प्रदेशांशी निगडित कलमे

कलमे २३९ - २४२ मंत्रिमंडळ रचना आणि उच्चन्यायालयांबाबत

भाग ९ - पंचायती पद्धतीबाबतची कलमे

कलमे २४३ - २४३ ओ ग्रामसभा आणि पंचायती पद्धतीबाबत

भाग ९ अ - नगरपालिकांबाबतची कलमे.

कलमे २४३पी - २४३ झेड नगरपालिकांबाबत

भाग १० -

कलमे २४४ - २४४ अ

भाग ११ - केंद्र आणि राज्यांच्या संबंधांविषयी

प्रकरण १ - कलमे २४५ - २५५ शासनाच्या अधिकारांच्या वितरणाविषयी

कलमे २४५ - २५५ शासनाच्या अधिकारांच्या वितरणाविषयी

प्रकरण २ - कलमे २५६ - २६३

कलमे २५६ - २६१ - सामान्य

कलमे २६२ - पाण्याचा विवादाबाबत.

कलमे २६३ - राज्यांचे परस्पर संबंध.

भाग १२ - संपत्ती, मालमत्ता व दिवाणी दावे यांबाबत

प्रकरण १ - कलमे २६४ - २९१ संपत्तीबाबत

कलमे २६४ - २६७ सामान्य

कलमे २६८ - २८१

कलमे २८२ - २९१ इतर

प्रकरण २ - कलमे २९२ - २९३

कलमे २९२ - २९३

प्रकरण ३ - कलमे २९४ - ३००

कलमे २९४ - ३००

प्रकरण ४ - कलम ३०० अ मालमत्तेच्या अधिकारांविषयक

कलम ३०० अ -

भाग १३ - भारताच्या व्यापार आणि वाणिज्यविषयक कलमे

कलमे ३०१ - ३०५

कलम ३०६ -

कलम ३०७ -

भाग १४ -

प्रकरण ५ - कलमे ३०८ - ३१४

कलमे ३०८ - ३१३

कलम ३१४ -

प्रकरण २ - कलमे ३१५ - ३२३ लोकसेवा आयोगाबाबतचे कलम

कलमे ३१५ - ३२३ लोकसेवा आयोगाबाबतचे कलम

भाग १४ अ - आयोगांच्या बाबत कलमे

कलमे ३२३ अ - ३२३ बी

भाग १५ - निवडणूक विषयक कलमे

कलमे ३२४ - ३२९ निवडणूक विषयक कलमे

कलम ३२९ अ -

भाग १६ -

कलमे ३३० -३४२

भाग १७ - अधिकृत भाषॆबाबतची कलमे

प्रकरण १ - कलमे ३४३ - ३४४ केंद्र भाषॆबाबत

कलमे ३४३ - ३४४ केंद्राच्या अधिकृत भाषॆबाबत

प्रकरण २ - कलमे ३४५ - ३४७ प्रांतीय भाषांबाबत

कलमे ३४५ -३४७ प्रांतीय भाषांबाबत

प्रकरण ३ - कलमे ३४८ - ३४९ सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयांच्या भाषॆबाबत, इत्यादी

कलमे ३४८ - ३४९ सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयांच्या भाषॆबाबत, इत्यादी

प्रकरण ४ - कलमे ३५० - ३५१ विशेष निर्देश

कलम ३५० -

कलम ३५० अ -

कलम ३५०बि - भाषिक अल्पसंख्यांकाविषयीचे कलम

कलम ३५१ - हिंदी भाषॆविषयक कलम

भाग १८ - आणीबाणी परिस्थितीबाबतची कलमे

कलमे ३५२ - ३५९ - आणीबाणी परिस्थितीबाबतची कलमे

कलम ३५९ अ -

कलम ३६० - आर्थिक आणीबाणी

भाग १९ - इतर विषय

कलमे ३६१ - ३६१अ - इतर विषय

कलम ३६२ -

कलमे ३६३ - ३६७ - इतर

भाग २० -घटनादुरुस्ती पद्धत

कलम ३६८ -घटनादुरुस्ती

भाग २१ -

कलमे ३६९ -३७८ अ

कलमे ३७९ - ३९१ -

कलम ३९२ - आणीबाणीच्या परिस्थितीतील राष्ट्रपतींचे हक्क

भाग २२ -

कलमे ३९३ -३९५


📝 *घटनादुरुस्त्या*

                राज्यघटनेच्या ३६८व्या कलमानुसार भारतीय संसदेस घटनेतील तरतुदी वाढवण्याचा, कमी करण्याचा वा बदलण्याचा अधिकार आहे. घटनादुरुस्तीचे विधेयक संसदेच्या दोन्ही सभागृहात मांडले जाणे व २/३ बहुमताने मंजूर होणे बंधनकारक आहे. घटनेच्या काही कलमांमधील दुरुस्त्यांना संसदेशिवाय किमान निम्म्या राज्यांच्या संमतीची गरज असते. संसदेच्या मान्यतेनंतरषे राष्ट्रपतीची स्वाक्षरी झाल्यावर ही दुरुस्ती अंमलात येते. 

 

भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी..

                                                             *भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी*           (भारताचे ११ वे पंतप्रधान)    *जन्म : २५ ...